हिन्दू पंचांग के चंद्रमास के अनुसार वर्ष का ग्यारहवां महीना है माघ। पौष के बाद माघ माह प्रारंभ होता है। पुराणों में माघ मास के महात्म्य का वर्णन मिलता है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चन्द्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। धार्मिक दृष्टिकोण से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो जाते हैं।
पद्मपुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।
'प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥'
माघ मास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुननी चाहिए और यदि यह संभव न हो सके तो माघ महात्म्य अवश्य सुनना चाहिए।
अतः इस मास में स्नान, दान, उपवास और भगवान माधव की पूजा अत्यंत फलदायी होती है। महाभारत में आया है माघ मास में जो तपस्वियों को तिल दान करता है, वह नरक का दर्शन नहीं करता। माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अतः इस प्रकार माघ स्नान की अपूर्व महिमा है।
शिशिर ऋतु : यह ऋतु हिन्दू माह के माघ और फाल्गुन के महीने अर्थात पतझड़ माह में आती है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस ऋतु से ऋतु चक्र के पूर्ण होने का संकेत मिलता है और फिर से नववर्ष और नए जीवन की शुरुआत की सुगबुगाहट सुनाई देने लगती है।
अंग्रेजी माह अनुसार यह ऋतु 15 जनवरी से पूरे फरवरी माह तक रहती है। इस ऋतु में मकर संक्रांति का त्योहार आता है, जो हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होना शुरू होता है। इसी ऋतु में हिन्दू मास फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है।