1. इस अवतार में भगवान विष्णु का शरीर आधे मनुष्य और आधे सिंह के समान था।
2. नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध कर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी।
3. दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे ब्रह्मा से मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था।
4. हिरण्यकशिपु के राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया।
5. हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से प्रहलाद वह बच जाते थे। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई।
6. अंत में हिरण्यकशिपु ने खुद की प्रहलाद को मारने की सोची। व प्रहलाद को पकड़ कर राजभवन में लाया और उसने कहा तु कहता है कि तेरे विष्णु भी जगह है तो क्या इस खंभे में भी है? प्रहलाद कहता है कि हां। तब हिरण्यकशिपु खंबे में एक लाद मारता है। तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए। उन्हें देखकर सभी भयभित हो गए
7. नृसिंह भगवान में हिरण्यकशिपु को उठाया और वे उसे महल की देहली पर ले गए। उस वक्त न दिन था न रात। श्रीहरिन उन्हें न धरती पर मारा न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से बल्की देहली पर बैठकर अपनी जंघा पर रखकर उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती चीर दी।