Tulsi: वैशाख मास में तुलसी जल दान का क्या है महत्व? तुलसी को जल क्यों चढ़ाना चाहिए ?
वैशाख के महीने में श्रीतुलसी जी को जल अर्पित करने का बड़ा महत्व है। वैशाख मास में क्योंकि सूर्य के ताप में वृद्धि हो जाती है इसलिए जल दान करने से श्रीहरि अत्यंत प्रसन्न होते हैं। जानते हैं कि तुलसी को जल दान क्यों करना चाहिए ?
तुलसी श्रीकृष्ण की प्रेयसी हैं। उनकी कृपा के फल से ही हम भगवान श्री कृष्ण की सेवा का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। तुलसी देवी के संबंध में कहा गया है तुलसी के दर्शन मात्र से ही संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं, जल दान करने से यम भय दूर हो जाता है, रोपण करने से यानी उनको बोने से उनकी कृपा से कृष्ण भक्ति वृद्धि होती है और श्रीहरि के चरण में तुलसी अर्पण करने से कृष्ण प्रेम प्राप्त होता है।
पद्मपुराण के सृष्टि खंड में वैष्णव श्रेष्ठ श्री महादेव अपने पुत्र कार्तिक को कहते हैं -
"सर्वेभ्य पत्र पुष्पेभ्य सत्यमा तुलसी शिवा सर्व काम प्रदत्सुतधा वैष्णवी विष्णु सुख प्रिया।"
समस्त पत्र और पुष्प में तुलसी सर्वश्रेष्ठ हैं। तुलसी सर्व कामना प्रदान करने वाली, मंगलमय, श्रुधा, शुख्या, वैष्णवी, विष्णु प्रेयसी एवं सभी लोको में परम शुभाय् है।
हे कार्तिक! जो व्यक्ति भक्ति भाव से प्रतिदिन तुलसी मंजरी अर्पण कर भगवान श्रीहरि की आराधना करता है यहां तक कि मैं भी उसके पुण्य का वर्णन करने में अक्षम हूं। जहां भी तुलसी का वन होता है भगवान श्री गोविंद वही वास करते हैं और भगवान गोविंद की सेवा के लिए लक्ष्मी ब्रह्मा और सारे देवता वही वास करते हैं।
मूलतः भगवान श्री कृष्ण ने जगत में बध जीव गणों को उनकी सेवा करने का शुभ अवसर प्रदान करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ही तुलसी रूप में आविर्भूत हुए हैं एवं उन्होंने तुलसी पौधे को सर्वाधिक प्रिय रूप में स्वीकार किया है। पाताल खंड में यमराज ब्राह्मण को तुलसी की महिमा का वर्णन करते हैं -
वैशाख में तुलसी पत्र द्वारा श्री हरि की सेवा के प्रसंग में वह कहते हैं कि जो व्यक्ति संपूर्ण वैशाख मास में अनन्य भक्ति भाव से तुलसी द्वारा त्री संध्या भगवान श्रीकृष्ण की अर्चना करता है उस व्यक्ति का और पुनर्जन्म नहीं होता।
तुलसी देवी की अनंत महिमा अनंत शास्त्रों में अनंत शास्त्रों में वर्णित है लेकिन यह महिमा असीमित है, अनंत है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में प्रकृति खंड में ऐसा वर्णन है -
"शिरोधार्य च सर्वे सामीप सताम विश्व पावनी जीवन मुक्ता मुक्तिदायिनी चा भजेताम हरि भक्ति दान।"
जो सबके शिरोधार्य है, उपासया है, जीवन मुक्ता है, मुक्ति दायिनी है और श्री हरि की भक्ति प्रदान करने वाली हैं, वह समस्त विश्व को पवित्र करने वाली हैं। ऐसी समस्त विश्व को पवित्र करने वाली विश्व पावनी तुलसी देवी को मैं सादर प्रणाम करता हूं।
समग्र वैदिक शास्त्रों के संकलन करने वाले तथा संपादक श्री व्यास देव तुलसी की महिमा करते हुए पद्मपुराण के सृष्टि खंड में कहते हैं -
उपदेशम दृश्य दृष्या स्यम आचरते पुनः स याति परम अनुस्थनाम माधवसे के कनम्।"
तुलसी देवी की पूजा, कीर्तन, ध्यान, रोपण और धारण पाप को नाश करने वाला होता है और इससे परम गति प्राप्त होती है।
जो व्यक्ति किसी अन्य को तुलसी द्वारा भगवान श्री हरि की अर्चना करने का उपदेश देता है और स्वयं भी अर्चना करता है वही वह श्री माधव के धाम में गमन करता है। केवल तुलसी देवी के नाम उच्चारण मात्र से ही श्रीहरि प्रसन्न हो जाते हैं और इसके परिणाम स्वरूप पाप समूह नष्ट हो जाता है और अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
पदम् पुराण के ब्रह्म खंड में कहां गया है -
"गंगाताम सरिता श्रेष्ठ: विष्णु ब्रह्मा महेश्वरा:
देव: तीर्थ पुष्करा तेश्थ्यम तुलसी दले।"
गंगा आदि समस्त पवित्र नदी एवं ब्रह्मा विष्णु महेश्वर पुष्कर आदि समस्त तीर्थ सर्वथा तुलसी दल में विराजमान रहते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि;
समस्त पृथ्वी में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ हैं। वह तुलसी उद्विग्न के मूल में तीर्थ निवास करते हैं। तुलसी देवी की कृपा से भक्तवृंद कृष्ण भक्ति प्राप्त करते हैं और वृंदावनवास की योग्यता अर्जित करते हैं। वृंदादेवी तुलसीदेवी समस्त विश्व को पावन करने में सक्षम है और सब के द्वारा ही पूज्य है।
समस्त पुष्पों के मध्य वो सर्वश्रेष्ठ हैं और श्री हरि सारे देवता, ब्राह्मण और वैष्णवगण के आनंद का वर्धन करने वाली हैं। वे अतुलनीय और कृष्ण की जीवन स्वरूपनी हैं। जो नित्य तुलसी सेवा करते हैं वह समस्त क्लेश से मुक्त होकर अभीष्ट सिद्धि प्राप्त करते हैं। अतः श्रीहरि की अत्यंत प्रिय तुलसी को जल दान अवश्य करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त इस समय भगवान से अभिन्न प्रकाश श्री शालिग्राम शिला को भी जल दान की व्यवस्था की जाती है।
शास्त्रों में तुलसी देवी को जल दान करने पर तुलसी के मूल में जो जल बच जाता है उसका भी विशेष महत्व वर्णित किया गया है। इस विषय में एक कहानी बताई गई है -
एक समय एक वैष्णव तुलसी देवी को जल प्रदान कर और परिक्रमा करके घर वापस जा रहे थे कि कुछ समय पश्चात एक भूखा कुत्ता वहां आकर तुलसी देवी के मूल में पड़े हुए जल था उसको पीने लगा लेकिन तभी वहां एक बाघ आया और उसको कहने लगा - दुष्ट कुकुर! तुम क्यों मेरे घर में खाना चोरी करने आए हो और चोरी भी करना ठीक है लेकिन मिट्टी का बर्तन क्यों तोड़ कर आए हो? तुम्हारे लिए उचित दंड केवल मृत्युदंड है।
इसके उपरांत बाघ उस कुत्ते को वही मार देता है और तभी यमदूत के गण उस कुत्ते को लेने आते हैं लेकिन उसी समय विष्णु दूतगण वहां आते हैं और उनको रोकते हैं।
कहते है यह कुत्ता पूर्व जन्म में जघन्य पाप करने के कारण नाना प्रकार के दंड पाने के योग्य हो गया था लेकिन केवल तुलसी के पौधे के मूल में पड़े जल का पान करने के फल से उसका समस्त पाप नष्ट हो चुका है और तो और वह विष्णु गमन करने की योग्यता अर्जित कर चुका है अतः वह कुत्ता सुंदर रूप को प्राप्त करता है और वैकुंठ के दूत गणों के साथ भगवद् धाम गमन करता है।
जगत जीवों को कृपा करने के उद्देश्य से ही भगवान की अतरंगशक्ति श्रीमती राधारानी का प्रकाश वृंदा तुलसी देवी के रूप में इस जगत में प्रकट हुआ है। उसी प्रकार भगवान श्री हरि भी बद्ध जीवो को माया के बंधन से मुक्त करने के लिए विचित्र लीला के माध्यम से अपने अभिन्न स्वरुप शालिग्राम शिला रूप में प्रकाशित हुए हैं। चारों वेदों के अध्ययन से लोगों को जो फल प्राप्त होता है केवल शालिग्राम शिला के अर्चना करने मात्र से ही वह पूर्ण फल प्राप्त किया जाना संभव है जो शालिग्राम शिला के स्नान जल, चरणामृत आदि को नित्य पान करते हैं वह महा पवित्र होते हैं एवं जीवन के अंत में भगवद धाम गमन करते हैं।
तुलसी माता की आरती-Tulsi Mata Aarti
जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।
तुलसी स्तुति मंत्र-
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः, नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
माता तुलसी के मंत्र-
तुलसी तोड़ने के मंत्र-
- मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
- ॐ सुभद्राय नमः
-ॐ सुप्रभाय नमः
जल चढ़ाने का मंत्र-
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
तुलसी पूजा मंत्र-
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।