प्राचीन प्रतिकाशी मंदिर

-विकास शिरपुरक
प्रत्येक हिन्दू की ये इच्छा होती है कि अपने जीवनकाल में एक बार काशी दर्शन का लाभ अवश्य ले और अगर जीते जी यह संभव न हो सका तो कम से कम मृत्यु पश्चात अस्थियाँ काशी ले जाकर वहाँ गंगा जैसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दी जाए। परंतु एक तीर्थस्थल ऐसा भी है जहाँ जाना काशी यात्रा से कम नहीं। तो चलिए धर्मयात्रा की कड़ी में इस बार हम आपको लेकर चलते हैं 'प्रतिकाशी' मंदिर।

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मध्यप्रदेश और गुजरात राज्य की सीमा पर नंदूरबार जिले में यह मंदिर स्थित है। प्रकाशा, ताप्ती, पुलंदा और गोमाई नदी के इस संगम पर शिव के 108 मंदिर होने की वजह से यह 'प्रतिकाशी' के नाम से भी जाना जाता है।

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काशी के समान ही पुण्यवान समझे जाने वाले इस तीर्थस्थल पर महाराष्ट्र से ही नहीं वरन पूरे देश से प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। 'ताप्ती महात्म्य' नामक इस प्राचीन धर्मग्रंथानुसार कई सदियों पूर्व छह-छह महीने के दिन और रात हुआ करते थे। इस काल में स्वयं भगवान शिव ने एक सिद्ध पुरुष के सपने में आकर कहा कि एक ही रात में जहाँ मेरे 108 मंदिर निर्मित किए जाएँगे तो मैं हमेशा के लिए वहीं पर निवास करूँगा। तत्पश्चात सूर्यकन्‍या ताप्ती, पुलंदा व गोमाई नदी के संगम पर यह सुंदर स्थान मंदिर निर्माण हेतु चुना गया।

शिव भक्तों ने एक ही रात अर्थात छह महीने में इस स्थान पर 107 मंदिर निर्मित कर दिए और जब 108वें मंदिर का निर्माण कार्य चालू था तभी सुबह हो गई। इस स्थान पर प्रकाश पड़ने की वजह से यह 'प्रकाशा' नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसके पश्चात तीर्थक्षे‍त्र काशी में भगवान शिवजी के 108 मंदिर निर्मित किए गए और वहाँ स्वयं भगवान काशी विश्‍वेश्वर रूप में विराजित हुए।

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ताप्ती नदी के किनारे स्थित यह सारे मंदिर पत्थरों से निर्मित हेमाड़पंथी रूप लिए हुए हैं। एक ही मंदिर में काशी विश्‍वेश्वर तथा केदारेश्वर का मंदिर है। यहाँ स्थित पुष्‍पदंतेश्‍वर के मंदिर का भी बहुत महत्व है, क्योंकि यह मंदिर तीर्थक्षेत्र काशी तक में स्थापित नहीं किया गया है। कहते हैं कि काशी यात्रा करने के पश्चात यहाँ आकर उत्तर पूजा संपन्न न कराने पर काशी यात्रा का पुण्य लाभ नहीं मिलता।

मंदिर के गर्भगृह में काले पाषाण से उकेरे हुए भव्य शिवलिंग तथा नंदी हैं। केदारेश्‍वर मंदिर के सामने पाषाण से ही निर्मित भव्‍य दीपस्‍तंभ है। इस स्थल पर अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन हेतु तीर्थक्षेत्र काशी के समान ही घाट है। इसलिए देशभर से कई लोग यहाँ अपने परिजनों की अस्थियाँ विसर्जित करने आते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि एक बार प्रकाशा यात्रा करना सौ दफा काशी यात्रा करने के समान है।

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कैसे पहुँचें-
सड़क मार्ग: मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित प्रकाशा नंदूरबार से 40 किमी की दूरी पर होने के साथ ही अंकलेश्वर-बहाणपुर राज्य महामार्ग पर स्थित है। नासिक, मुंबई, पुणे, सूरत और इंदौर से नंदूरबार के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
रेल मार्गः नंदूरबार यहाँ से निकट रेलवे स्टेशन है जोकि सूरत-भुसावल रेल मार्ग पर है।
वायु मार्ग: गुजरात स्थित सूरत का विमानतल नंदूरबार से करीब 150 किमी की दूरी पर स्थित है। जहाँ से सड़क मार्ग से प्रकाशा जाया जा सकता है।