धार्मिक स्थल : मां भगवती बगलामुखी का प्राचीन मंदिर
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में 'मां बगलामुखी मंदिर'।
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।
मध्यप्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।
इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधिष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहां की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।
यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। सन् 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं।
बगलामुखी माता मूलत: तंत्र की देवी हैं, इसलिए यहां पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है। यह मंदिर इसलिए महत्व रखता है, क्योंकि यहां की मूर्ति स्वयंभू और जाग्रत है तथा इस मंदिर की स्थापना स्वयं महाराज युधिष्ठिर ने की थी।
इस मंदिर में बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आंकड़ा, आंवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं। इसके आसपास सुंदर और हरा-भरा बगीचा देखते ही बनता है। नवरात्रि में यहां पर भक्तों का हुजूम लगा रहता है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण वर्षभर यहां पर कम ही लोग आते हैं।