इंदौर का ऐतिहासिक महालक्ष्मी मंदिर

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इंदौर शहर के हृदय स्थल राजवाड़ा की शान कहे जाने वाले श्री महालक्ष्मी मंदिर के संबंध में होलकर इतिहास के जानकार गणेश मतकर का कहना है कि मल्हारी मार्तंड मंदिर के साथ राजवाड़ा स्थित इस प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर में सुश्रृंगारित प्रतिमा का बहुत अधिक महत्व है।

ये मंदिर होलकर रियासत की श्रद्धा का प्रतीक होने के साथ-साथ समूचे इंदौरवासियों के लिए भी बहुत महत्व रखता है। 1832 में इस मंदिर का निर्माण मल्हारराव (द्वितीय) ने कराया था। 1933 में यह तीन तल वाला मंदिर था जो आग के कारण तहस-नहस हो गया था। 1942 में मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया गया था।

इस प्राचीन मंदिर का होलकर रियासत में कुछ खास महत्व था। राजवाड़ा में होलकर रियासत के दफ्तर में दाखिल होने से पहले अधिकारी, कर्मचारी महालक्ष्मी मंदिर के अंदर जाकर जरूर दर्शन करते थे। तब से यानी ढाई सौ साल से यहाँ श्रद्धालुओं का ताँता-सा लगा रहता है। प्रतिदिन यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिमा के दर्शन करते हैं। वर्तमान में महालक्ष्मी मंदिर में मुश्किल से दस-पंद्रह लोग ही खड़े रह पाते हैं। फिलहाल मंदिर टीन की चद्दरों से ढँका है। पूरा मंदिर लकड़ी से बना है।

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मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर की तर्ज पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार करके इसे भव्य रूप दिया जाएगा। तल मंजिल पर दुकानें रहेंगी और ऊपरी तल पर लक्ष्मीजी की प्रतिमा रहेगी। प्रतिमा के आसपास काफी खुला स्थान रहेगा, यही नहीं श्रद्धालु प्रतिमा के दर्शन सड़क से भी कर पाएँगे।

इसके लिए महारानी उषादेवी मल्होत्रा ने भी आर्थिक मदद का आश्वासन दिया है, वे चाहती हैं इस प्राचीन धरोहर को श्रद्धालुओं की जनभावना के अनुरूप बनाया जाए। जिसका नक्शा आर्किटेक्ट एसएस घोड़के एंड घोड़के ने तैयार किया है। इसके जीर्णोद्धार के बाद यहाँ एक साथ ज्यादा संख्या में श्रद्धालु पूजा कर सकेंगे। यह कहा जा रहा है कि इस भव्य मंदिर के बन जाने के बाद राजवाड़ा क्षेत्र का महत्व और ज्यादा बढ़ जाएगा।