Kedarnath Yatra: 30 अप्रैल 2025 को यमुनोत्री और गंगोत्री के मंदिर के कपाट खुलने के बाद अब 2 अप्रैल को केदारनाथ के कपाट खुल गए हैं और 4 अप्रैल को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे। रुद्रप्रयाग जिले में 11 हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित 11वें ज्योतिर्लिंग के रूप में बाबा केदारनाथ। यदि आप भी केदारनाथ के दर्शन करने जा रहे हैं तो 5 कार्य जरूर करें।
1. पशुपति नाथ के करें दर्शन: यदि आप बाबा केदारनाथ के दर्शन कर रहे हैं तो माना जाता है कि यह अधूरे दर्शन हैं। क्योंकि केदारनाथ का ज्योतिर्लिंग अधूरा शिवलिंग है जिसका आधा भाग नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर में स्थित है। इसीलिए दोनों के ही दर्शन करने से ही इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूर्ण होते हैं। यदि आप केदारनाथ में शिवलिंग के दर्शन किए हैं तो वहीं पर इस शिवलिंग की कथा जरूर सुने या पढ़ें। कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिवजी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ (नेपाल) कहा जाता है। पुराणों में पंचकेदार की कथा नाम से इस कथा का विस्तार से उल्लेख मिलता है।
2. नर और नारायण के तप से प्रसन्न होकर शिवजी स्थापित हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में: पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है। इसके शिखर दर्शन जरूर करें। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है।
3. शंकराचार्य समाधि के दर्शन: केदारनाथ मंदिर के पीछे आदि शंकराचार्य की समाधि है। यह बहुत ही पवित्र जगह है। यहां के मंदिर का निर्माण जन्मेजय ने कराया था और जीर्णोद्धार आदिशंकराचार्य ने किया था। इसके बाद भोज राजाओं ने मंदिर की देखरेख की।
4. चमत्कारिक शिला: यहां एक शिला रखी हुई है जिसके दर्शन करना न भूलें। एक प्रलयंकारी बाढ़ के चलते 10 हजार लोग मारे गए थे। उस वक्त इसी शिला ने बाबा केदारनाथ मंदिर, शंकराचार्य की समाधि और मंदिर में स्थित भक्तों को इसी शिला ने बचाया था। विशालकाय डमरूनुमा चट्टान उपर के पहाड़ों से लुड़कती हुई तेजी गती से आई और अचानक मंदिर के पीछे 50 फुट की दूरी पर रुक गई। यह प्रत्यक्ष घटना बाढ़ में एक पेड़ पर चढ़े दो साधुओं ने देखी। उस चट्टान के कारण बाढ़ का तेज पानी दो भागों में कट गया और मंदिर के दोनों ओर से बहकर निकल गया। उस वक्त मंदिर में 300 से 500 लोग शरण लिए हुए थे। साधुओं के अनुसार उस चट्टान को मंदिर की ओर आते देख उनकी रूह कांप गई थी। उन्होंने केदार बाबा का नाम जपना शुरू कर दिया और अपनी मौत का इंतजार करने लगे थे, लेकिन बाबा का चमत्कार की उस चट्टान ने मंदिर और उसके अंदर शरण लिए लोगों को बचा लिया।
5. मंदाकिनी नदी: यहां पर आप मंदाकिनी नदी, सरस्वती और अलकनंदा नदी के दर्शन जरूर करें। यहां के तट पर पितृ तर्पण करना न भूलें या बद्रीनाथ धाम भी जा रहे हैं तो वहां पर पितृ तर्पण जरूर करें। खासकर ब्रह्म कपाल नामक स्थान पर पितरों के निमित्त किए गए कर्मकांड से पितरों को तुरंत ही मुक्ति मिलती है और जातक को पितृ दोष से।
केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।
तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूज्य च।
तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।।
स्कंद पुराण में भगवान शंकर, माता पार्वती से कहते हैं, हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है।