पाताल में चला जाता है इस शिवलिंग पर अर्पित किया जल
छत्तसीगढ़ का काशी : यह मंदिर छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर पर खरौद नामक शहर में स्थित है। खरौद छत्तीसगढ़ का प्रमुख कला केंद्र है और इस स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति भी होती है इसीलिए इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है। मान्यता अनुसार श्रीराम ने खर और दूषण का यहीं पर वध किया था। इसीलिए इस जगह का नाम खरौद है। कहा जाता हैं कि यहां पूजा करने से ब्रह्महत्या के दोष का भी निवारण हो जाता है।
क्या है शिवलिंग की पौराणिक कथा : कहते हैं कि रावण का वध करने के बाद लक्ष्मणजी ने भगवान राम से ही इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। यह भी कहते हैं कि लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग की स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। कथा के अनुसार शिवजी को जल अर्पित करने के लिए लक्ष्मण जी पवित्र स्थानों से जल लेने गए थे, एक बार जब वे आ रहे थे तब उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। कहते हैं कि शिवजी ने बीमार होने पर लक्ष्मण जी को सपने में दर्शन दिए और इस शिवलिंग की पूजा करने को कहा। पूजा करने से लक्ष्मणजी स्वस्थ हो गए। तभी से इसका नाम लक्ष्मणेश्वर है। मंदिर के प्राचीन शिलालेख अनुसार आठवीं शताब्दी राजा खड्गदेव ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया था। यह भी उल्लेख है कि मंदिर का निर्माण पाण्डु वंश के संस्थापक इंद्रबल के पुत्र ईसानदेव ने करवाया था।
कहते हैं इसे लक्षलिंग : यह मंदिर अपने आप में बेहद अद्भुत और आश्चर्यों से भरा है। कहते हैं कि इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिए इसे लक्षलिंग या लखेश्वर कहा जाता है। इन एक लाख छेदों में से एक छेद ऐसा है जो पाताल से जुड़ा है। इसमें जितना भी जल डाला जाता है वह सब पाताल में समा जाता है जबकि एक छेद ऐसा भी है जो हमेशा जल से भरा रहता है जिसे अक्षय कुण्ड कहा जाता है। लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू भी कहा जाता है।