Pok का शारदा शक्तिपीठ जहां से लाई गई थी मिट्टी अयोध्या में भूमि पूजन हेतु

अनिरुद्ध जोशी

गुरुवार, 6 अगस्त 2020 (16:14 IST)
अयोध्या में राम जन्मभूमि पूजन हेतु लगभग 100 से अधिक नदियों का जल और 2000 से अधिक स्थानों की मिट्टी को लाया गया। इसमें पीओके में स्थित पवित्र शारदा पीठ से भी प्रसाद और पवित्र मिट्टी को अयोध्या लाया गया था। कर्नाटक के रहने वाले और सेवा शारदा पीठ के सक्रिय सदस्य अंजना शर्मा को यह मिट्टी चीन में रहने वाले वेंकटेश रमन और उनकी पत्नी ने लाकर दी थी। शारदा पीठ के मुख्य रविन्द्र पंडित के निर्देश पर अंजना शर्मा यह मिट्टी लेकर अयोध्या पहुंचें। अयोध्या पहुंचने पर उनका जोरदार स्वागत किया गया। आओ जाननते हैं कि पीओके में शारदाशक्ति पीठ कैसा है।

 
कहां स्थित है? यह मंदिर भारत के उरी से करीब 70 किमी दूर स्थित पीओके में है।। वहां जाने के लिए दो रूट हैं, पहला मुजफ्फराबाद की तरफ से और दूसरा पुंछ-रावलकोट की ओर से।  उरी से मुजफ्फराबाद वाला रूट कॉमन है। ज्यादातर लोग इसी रूट से जाते हैं। यह मंदिर नीलम नदी के किनारे स्थित है। 
 
कश्मीरी पंडितों का मुख्य पूजा स्थल : अमरनाथ, खीर भवानी, रघुनाथ मंदिर और अनंतनाग के मार्तंड सूर्य मंदिर के बाद पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए प्रसिद्ध पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर भी अब लगभग खंडहर में तब्दील हो चूका है। 1948 के बाद से इस मंदिर की बमुश्किल ही कभी मरम्मत हुई। 19वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंग ने इसकी आखिरी बार मरम्मत कराई और तब से ये इसी हाल में है। कहते हैं कि यह मंदिर 5 हजार वर्ष पुराना है। शारदा देवी मंदिर में पिछले 70 साल से पूजा नहीं हुई है।
 
 
यहां था विश्‍व विद्यालय : बताया जाता है कि यहां प्रसिद्ध शारदा विश्वविद्यालय भी था। जहां पांच हजार से ज्यादा विद्वान पढ़ते थे। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य भी वहीं पढ़े थे। विद्या की अधिष्ठात्री हिन्दू देवी को समर्पित यह मंदिर अध्ययन का एक प्राचीन केंद्र था। शारदा पीठ भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वश्रेष्ठ मंदिर विश्वविद्यालयों में से एक हुआ करता था।
 
भगवान शंकर के कदम पड़े थे : माना जाता है कि भगवान शंकर यहां से यात्रा करते हुए निकले थे। इसीलिए इस मंदिर की महत्ता सोमनाथ के शिवालिंगम मंदिर जितनी है। 
 
सती का दाहिना हाथ गिरा था : पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर ने सती के शव के साथ जो तांडव किया था उसमें सती का दाहिना हाथ इसी पर्वतराज हिमालय की तराई कश्मीर में गिरा था। माना जाता है कि यहां देवी का दायां हाथ गिरा था।
 
प्रमुख 18 महाशक्तिपीठों में से एक : सनातन परंपरा के अनुसार नीलम नदी के किनारे पर मौजूद इस मंदिर को देवी शक्ति के 18 महा‍शक्तिपीठों में से एक माना गया है। 
 
सम्राट अशोक के साम्राज्य में स्थित था यह शक्तिपीठ : 237 ईस्वी पूर्व अशोक के साम्राज्य में स्थापित प्राचीन शारदा पीठ करीब 5,000 साल पुराना एक परित्यक्त मंदिर है। 
 
दोनों ही संप्रदायों का प्रमुख स्थान : शैव संप्रदाय के जनक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए और दोनों ही ने दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। शंकराचार्य यहीं सर्वज्ञपीठम पर बैठे तो रामानुजाचार्य ने यहीं पर श्रीविद्या का भाष्य प्रवर्तित किया।
 
शारदा लिपि यहीं से जन्मीं : 141 ईस्वी में इसी स्थान पर चौथी बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था। शारदा पीठ में बौद्ध भिक्षुओं और हिंदू विद्वानों ने शारदा लिपि का आविष्कार किया था। शारदा पीठ में पूरे उपमहाद्वीप से विद्वानों का आगमन होता था।
 
मंदिर पर आक्रमण : चौदहवीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं से मंदिर को बहुत क्षति पहुंची है। बाद में विदेशी आक्रमणों से भी इस मंदिर को काफी नुकसान हुआ। इसके बाद 19वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंग ने इसकी आखिरी बार मरम्मत कराई और तब से ये इसी हाल में है। भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे के बाद से ये लाइन ऑफ कंट्रोल के पास वाले हिस्से में आता है। बंटवारे के बाद से ये जगह पश्तून ट्राइब्स के कब्जे में रही। इसके बाद से ये पीओके सरकार के कब्जे में है।
 
किताबों में मिलता है उल्लेख : 11वीं शताब्दी में लिखी गई संस्कृत ग्रन्थ राजतरंगिणी में शारदा देवी के मंदिर का काफी उल्लेख है। इसी शताब्दी में इस्लामी विद्वान अलबरूनी ने भी शारदा देवी और इस केंद्र के बारे में अपनी किताब में लिखा है।

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