स्वयंवर में अर्जुन के द्वारा लक्ष्य भेद करने पर द्रोपदी पांडवों को प्राप्त हुई। कई दैवी कारणों से द्रोपदी पांचों पांडवों की पत्नी हुई। यह पांचों पांडवों को अपने शील, स्वभाव और प्रेममय व्यवहार से प्रसन्न रखती थीं।
जब कपट के द्यूत में महाराज युधिष्ठिर अपने राजपाट, धन-वैभव तथा स्वयं के साथ द्रोपदी तक को हार गए, तब दुःशासन दुर्योधन के आदेश से द्रोपदी को एक वस्त्रावस्था में खींचकर भरी सभा में ले आया। सभा में रोते-रोते द्रोपदी ने सभासदों से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। दुष्ट दुःशासन उन्हें भरी सभा में निर्वस्त्र करना चाहता था।
भीष्म, द्रोण ने अपनी आंखें मूंद लीं, विदुर सभा से उठकर चले गए। जब द्रोपदी चारों ओर से निराश हो गई तब उन्होंने आर्तस्वर में भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा, 'हे कृष्ण, हे गोविंद! क्या तुम नहीं जानते कि मैं कौरवों के द्वारा अपमानित हो रही हूं। कौरवरूपी समुद्र में डूबती हुई मुझ अबला का उद्धार करो। कौरवों के बीच विपन्नावस्था को प्राप्त मुझ शरणागत की रक्षा करो।'