उनका क्रोध इतना गहरा था कि अपने गुस्से में वे पूरी गंगा को पी गए, जिसके बाद भगीरथ ऋषि ने जह्नु ऋषि से आग्रह किया कि वे गंगा को मुक्त कर दें। जह्नु ऋषि ने भगीरथ ऋषि का आग्रह स्वीकार किया और गंगाजी को अपने कान से बाहर निकाला।
जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय वैशाख पक्ष की सप्तमी तिथि थी, इसलिए इस दिन से गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इस दिन को गंगा का दूसरा जन्म माना और कहा भी जाता है। अत: जह्नु की कन्या होने की कारण ही गंगाजी को 'जाह्नवी' कहते हैं।