पहली कथा : एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। उस समय पवनदेव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा और ऐसा ही हुआ भी।
दूसरी कथा : एक बार अयोध्या के राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि हवन कर रहे थे। हवन समाप्ति के बाद प्रसाद की खीर तीनों रानियों में थोड़ी बांट दी। खीर का एक भाग एक कौआ अपने साथ एक जगह ले गया जहां अंजनी तपस्या कर रही थीं। तपस्या करती अंजना के हाथ में जब खीर आई तो उन्होंने उसे शिवजी का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लिया। इसी प्रसाद की वजह से हनुमान का जन्म हुआ।