रामायण और रामचरित मानस से इतर सीता माता और लक्ष्मण के बारे में एक रोचक कथा मिलती है। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि इस बात में कोई सचाई नहीं है। यह तो मात्र किवदंतियां हैं। यह कथा कितनी सही है यह तो बताना मुश्किल है लेकिन जनमानस में यह कथा प्रचलित है कि एक समय माता सीता ने उनके देवर लक्ष्मण को निकल लिया था और उस वक्त हनुमानजी दूर से ही देखते रहे थे। आओ जानते हैं कि ऐसा क्यूं हुआ था।
रावण का वध करने के बाद भगवान राम लंका से माता सीता के साथ अयोध्या लौट रहे थे। उस दौरान अयोध्या को दीपकों से सजाया जा रहा था। दीपावली का दिन था। उत्सव मनाया जा रहा था। उसी वक्त सीता माता को यह याद आया की वनवास जाने से पूर्व मां सरयु से वादा किया था कि अगर पुन: अपने पति और देवर के साथ सकुशल अयोध्या वापस आऊंगी तो आपकी विधिवत रूप से पूजा अर्चना करूंगी।
यह सोचकर सीता माता लक्ष्मण को साथ लेकर रात्रि में सरयू नदी के तट पर पहुंच गई। उन्होंने सरयू की पूजा करने के लिए अपने देवर लक्ष्मण से जल लाने के लिए कहा। लक्ष्मणजी जल लाने के लिए घड़ा लेकर सरयू नदी में उतर गए। वे जल भर ही रहे थे कि तभी अचानक सरयू नदी के भीतर से अघासुर नाम का एक राक्षस निकला जो लक्ष्मणजी को निगलने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन तभी भगवती सीता ने यह दृश्य देखा और उन्होंने लक्ष्मण को बचाने के लिए अघासुर के निगलने से पहले स्वयं लक्ष्मण को निगल गई। लक्ष्मण को निगलते ही सीता और लक्ष्मण का शरीर जल के समान एक तत्व में बदल गया।
हनुमानजी की सारी बात सुनने के बाद भगवान राम मुस्कुराए और उन्होंने हनुमानजी को बताया कि इस राक्षस को भगवान शिव का वरदान प्राप्त है इसलिए इसका वध मैं भी नहीं कर सकता। भगवान शिव के इस वरदान के अनुसार अघासुर का वध तभी किया जा सकता है जब सीता और लक्ष्मण का शरीर एक होकर किसी तत्व में बदल जाए और हनुमान उस तत्व का उपयोग एक शस्त्र के रूप में करें।
प्रभु श्रीराम की यह बातें सुनकर हनुमान ने उस घड़े के जल को गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके सरयू नदी में बहा दिया। सरयू नदी में उस जल के मिलते ही नदी में आग की लपटें उठने लगीं जिसमें जलकर अघासुर राक्षस भस्म हो गया। अघासुर के भस्म होते ही सरयू नदी ने सीता और लक्ष्मण को उनका शरीर वापस कर दिया और इस तरह से उन्हें फिर से एक नया जीवन मिला।