श्रुति अनुसार अकबर के समय की बात है एक वैष्णव भक्त प्रतिदिन श्रीनाथ जी के लिए माला लेकर जाता था। एक दिन अकबर का सेनापति भी ठीक उसी समय माला लेने पहुंचा जबकि माली के पास केवल 1 ही माला शेष थी। वैष्णव भक्त और अकबर के सेनापति दोनों ही माला खरीदने के लिए अड़ गए। इस धर्मसंकट से मुक्ति पाने के लिए माली ने कहा कि जो भी अधिक दाम देगा उसी को मैं यह माला दूंगा। दोनों ओर से माला के लिए बोली लगनी आरंभ हो गई।
जब माला की बोली अधिक दाम पर पहुंची तो अकबर के सेनापति बोली बंद कर दी। अब वैष्णव भक्त को अपनी बोली के अनुसार दाम देने थे। भक्त तो अंकिचन ब्राह्मण था उसके पास इतना धन नहीं था सो उसने उसके घर सहित जो कुछ भी पास था वह सब बेच कर दाम चुकाकर माला खरीद ली। जैसे ही उसने यह माला श्रीनाथजी की गले में डाली वैसे ही उनकी गर्दन झुक गई। श्रीनाथजी को झुके देख उनके सेवा में लगे पुजारी भयभीत हो गए। उनके पूछने पर जब श्रीनाथ जी ने सारी कथा उन्हें बताकर उस भक्त की सहायता करने को कहा। जब पुजारियों ने उस भक्त का घर सहित सब व्यवस्थाएं पूर्ववत की तब जाकर श्रीनाथ जी सीधे हुए।