मेरा संविधान मुझे आत्मसम्मान का अधिकार देता है

26 जनवरी भारतीय इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन सन 1950 में भारतीय संविधान लागू किया गया था, जो कि‍ एक सर्वोच्च कानून माना जाता है। बी.आर अंबेडकर जी ने भी यह कभी नहीं सोचा होगा कि‍ आज 2017 में हम संविधान भूलकर एक नया संविधान बना रहे हैं।

कैसे ??
हमारा संविधान ने हमें मूल अधिकार दिए हैं, जिन में से एक है - समानता का अधिकार। मतलब सब नागरिक बराबर हैं, उनके साथ जाति‍, धर्म, मूलवंश, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई भेद भाव नहीं होगा। परंतु आज के युग में जो चल रहा है उसमें लिंग के आधार पर ही अधिकार छीन लिए जाते हैं। भारत को माता कहने वाले लोग, उसी धरती पर जन्मी स्त्री को धिक्कारते हैं।
 
या तो उनका जन्म होने से पहले ही भ्रूण हत्या कर देते हैं या फिर उससे इस्तेमाल की चीज समझ कर रखते हैं। पर कोई एक स्त्री को इंसान समझने का सम्मान क्यों नही देता? क्यों भूल जाते हैं कि यह उनका मूल अधिकार है? क्यों एक लड़के की चाह में उसका भ्रूण हत्या की जाती है, या उसके घर में उसके साथ भेद भाव होता है- जहां घर में कमाई कम होने के कारण उसे स्कूल नहीं भेज जाता, पर उसके भाई को भेज जाता है। या उसे बोझ समझ कर कम उम्र में अपने के दुगनी उम्र के या नापसंद लड़के से शादी करवा दी जाती है। यहां तक कि ना चाहते हुए उसे इस्तेमाल की चीज समझ कर हर रात उसका इस्तेमाल किया जाता है। उसकी मर्जी के बिना उसे मां बनने पर मजबूर किया जाता है। 
अगर हम एक तरफ उन लड़कियों की बात करें, जो एक समझदार परिवार में पैदा हुई हैं और उन्हें पढ़ लिखकर अपने आत्म सम्मान के लिए और अपनी पहचान के लिए काम करने का सौभाग्य मिला, वह भी शादी के बाद या तो उनसे छीन लिया जाता है या फिर उन्हें पैसे कमाने की मशीन माना जाता है। ऑफिस के साथ -साथ घर का भी सारा काम उन पर आता है और लड़के सिर्फ नौकरी करते हैं। जब संविधान में सब बराबर है, तो समाज में क्यों नहीं? यह विभेद हमारे आपके घर से ही शुरू होता है। और क्या यह सिर्फ इसलिए, क्योंकि वह एक स्त्री है?
 
हमें संविधान आत्मसम्मान का अधिकार देता है, जो कहता है कि आपको सिर्फ जीने का ही नहीं अपितु गौरव से जीने का हक है। परंतु जहां हर रोज एक स्त्री को  रेप या दहेज का शिकार बनाया जाता है, या जहां एक स्त्री ही स्त्री की दुश्मन हो, ऐसे समाज में एक स्त्री गौरव और सम्मान से कैसे जी सकती है? जो ससुराल उसे अपना तो लेता है पर एक बेटा पैदा न होने पर उसे नफरत की नज़रों से देखता है। उसका बॉस जो कभी उसके काम को सराहता था ,वो उसे पदोन्नति के बहाने गलत काम करने के मजबूर करता है या बुरी नजर डालता है। अगर एक स्त्री तलाकशुदा या अविवाहित है, तो समाज उससे घृणा करता है। ऐसे लोगों के बीच में रहने वाली लड़की को जीने का सम्मान कैसे मिलेगा ?
 
क्या विश्व के सबसे बड़े संविधान में एक महिला के हक के लिए कुछ नहीं है? बिलकुल है, पर शायद इस पर भी हमारा समाज ऊंगली उठाता है। समय-समय पर स्त्री पर हो रहे हत्याचारों को देखते हुए बहुत से कानून लागु किए गए। शायद इनकी जरूरत कभी ना पड़ती, अगर महिलाओंं  को समाज में बराबरी का हक और सम्मान दिया जाता। उदाहरण के तौर पर दहेज से या घरेलु हिंसा से परेशान स्त्री के लिए, ऑफिस में होने वाले यौन शोषण के लिए, जबरदस्ती गर्भपात करवाने के लिए और यहां तक कि किसी विज्ञापन में लड़की की अश्लील तस्वीर या विडियो के होने पर भी कानून है। बस जरुरत है तो उन्हें जानने की।
ऐसा क्या करें ?
सबसे बदलाव की उम्मीद करने से पहले हर एक स्त्री को खुद को बदलना होगा। लोगों को अपने आप को बेचारा समझने ना दें। लोग ऐसा व्यवहार करते है क्योंकि हम सहते हैं और उन्हें यह करने देते हैं। एक स्त्री भूल जाती है कि वो एक जननी है, उसमें जितनी सहनशक्ति किसी में नहीं। धरती को इसलिए माता कहा जाता है, क्योंकि वह सहनशक्तिशाली है और सबसे बोझ उठती है। वैसे ही एक स्त्री अपने जीवन में पैदा होते ही समाज की सोच और उनके प्रति हो रहे दुर्व्यवहार का बोझ संभालती है। इतने दुखों से घिरने के बावजूद वह लड़ना नहीं छोड़ती, बस चाहती है एक इज्जत और गौरव से भरा जीवन। स्त्री एक पुरुष से कई ज्यादा बहादुर है, पर उसकी इस शक्ति और वीरता को लोग बाहर आने नहीं देते।
 
जरुरत है तो उस शक्ति को बहार निकलने की, अपने आप को पहचानने की, अपनी सहनशीलता को अपनी मजबूरी नहीं हथियार बनाने की और पहला कदम एक सुंदर जीवन के और बढ़ाने की। और यह सब और किसी के नहीं अपने लिए करना है, अपने आप को बराबरी का दर्जा दिलवाने के लिए करना है। अपने आप की और अपने सम्मान की रक्षा कीजिए। इन सब के लिए संविधान आपके साथ है। 
 
- संविधान में दिए गए अधिकार और स्त्री हित में कानूनों को जानिए। इन सब पर आपका पूरा अधिकार है। उनका सही तरह से अपने लिए ज़रुरत आने पर इस्तेमाल कीजिए।
- स्वयं की रक्षा कीजिए। हो सके तो आत्मरक्षा की तकनीक सीखें, कोई क्लासेज ज्वाइन करें या इंटरनेट से यूट्यूब पर देख कर सीखें। 
- हो सके तो आत्म निर्भर बनें। क्योंकि अधिकतर स्त्री घर में काम करती है तो उनका काम सराहा नहीं जाता। काम करें और हो सके तो इज्जत से पैसा कमाएं ताकि आपको कोई दबा न सके ।
- अपने पासवर्ड, बैंक अकाउंट के नंबर या जानकारी, ईमेल, सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विटर, आदि किसी के पासवर्ड, या अपनी फोटोग्राफ्स सभी लोगों के साथ शेयर ना करें। अगर शेयर की हैं तो तो उन्हें डिलीट करवाकर बैकअप लें, ताकि कोई आपको कभी परेशान या ब्लैक मेल ना कर सके। बॉयफ्रेंड, पति के साथ भी यह सब सोच समझ कर शेयर करें।
- विश्वास कीजिए पर अंधविश्वास नहीं। हमेशा जागरूक और सतर्क रहें, सिर्फ अपने लिए। दूसरों की सोच जितने समय में बदलेंगे, उससे कहीं जल्दी आप अपने अंदर यह बदलाव लेकर एक बेहतर जीवन व्यतीत कर सकती हैं। 
 
और याद रखिए चंदा कोचर, किरण बेदी, अरुंधति भटाचार्य, इन्होंने अगर समाज से लड़कर अपना हक ना लिया होता, तो आज उनके नाम सुर्खियों में ना होते। यह सब अलग नहीं है, बस उन्होंने अपने हक को समझा, खुद को पहचाना और अपने आप से दिन रात लड़ने की जगह बाहर अपने हक के लिए लड़ना जरूरी समझा।
 
आप जैसी सोच रखेंगी,  वैसे ही अपना जीवन बनाएंगी। यह देश आपके साथ है, इस देश का संविधान और कानून आपके साथ है। 
 
अपने आप को संपूर्ण तरह से किसी को ना सौंपिए, जितना अच्छे से आप अपना ख्याल रख सकती हैं कोई और नहीं रखेगा। अपने आप को पहचानिए, अपनी शक्ति को जानिए और इस देश के संविधान पर विश्वास रखते हुए एक इज्जत भरे जीवन की और कदम बढ़ाइए।
 
26 जनवरी को भले ही आपको बहादुरी का पुरस्कार ना मिले, पर आप स्वयं को एक नए जीवन का पुरस्कार दें, जिसमें किसी को भी खुद पर कोई अत्याचार करने ना दें। एक नए समाज की पहल खुद से कीजिए।

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