गणतंत्र दिवस विशेष : राष्ट्रगान के वे अंतिम पद जो कहीं और नहीं मिलेंगे...
एक ऐसा गान जो प्रत्येक देशवासी की जुबान पर रहे। ऐसी धुन जिसके बजते ही तन-मन देशप्रेम की भावना में रम जाए। ऐसी प्रस्तुति जिसे सुनकर भाल गर्व से चमक उठे। लेकिन यह पूरा किसे याद है आइए जानते हैं इसके अंतिम पद जो कहीं और नहीं मिलेंगे...
राष्ट्र गान के अंतिम पद
अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी।
हिन्दु बौद्ध सिख जैन पारसिक, मुसलमान ख्रिस्तानी।
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पाशे; प्रेमहार जय गाथा।
जन-गण-ऐक्य-विधायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,जय जय जय, जय हे ॥
पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पन्था, युग-युग-धावित यात्री ।
हे चिर सारथि,तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिन रात्री ।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे, हे संकटदुःखत्राता।