भारतीय हॉकी में हॉकी इंडिया और खेल मंत्रालय के बीच वर्ष 2010 में पूरे साल चलती रही उठापटक के बीच विश्वकप, राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेलों के रूप में तीन ऐसे सुनहरे मौके थे जिनमें शानदार प्रदर्शन कर भारत अपना स्वर्णिम गौरव हासिल कर सकता था लेकिन उसने तीनों ही मौके गँवा दिए।
भारतीय हॉकी इन सुनहरे मौकों को गँवाकर आज भी उसी हाल में खडी है, जहाँ वह 2008 के पेइचिंग ओलिम्पिक खेलों से पहले थी जब वह अपने खेलों के इतिहास में पहली बार ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई थी।
भारत फरवरी-मार्च में दिल्ली में हुए हॉकी विश्वकप में बेहद खराब प्रदर्शन करते हुए 12 टीमों में आठवें स्थान पर रहा जबकि अक्टूबर में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में वह फाइनल में तो पहुँचा लेकिन स्वर्ण पदक मुकाबले मे उसे ऑस्ट्रेलिया ने 8-0 के शर्मनाक अंतर से रौंद दिया।
चीन के ग्वांगझू में नवंबर में हुए 16वें एशियाई खेलों में भारत ने ग्रुप मैचों में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन सेमीफाइनल में अति आत्मविश्वास उसे ले डूबा और वह फाइनल में नहीं पहुँच सका। इसके साथ ही उसके हाथों से 2012 के लंदन ओलिम्पिक का सीधा टिकट कटाने का मौका भी निकल गया।
पूरे वर्ष में भारतीय हॉकी टीम का एकमात्र अच्छा प्रदर्शन मलेशिया में अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में रहा जहाँ वह दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त विजेता बना।
भारतीय टीम के प्रमुख कोच स्पेन के होजे ब्रासा की भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) से लगातार ठनी रही जबकि विश्वकप से पहले खिलाड़ियों ने पुणे में अपने शिविर के दौरान बगावत का झंडा बुलंद किया। ब्रासा साई अधिकारियों पर लगातार उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाते रहे लेकिन जिस परिणाम के लिए उन्हें नियुक्त किया गया था वह एक भी परिणाम भारत को नहीं दे पाए।
हॉकी इंडिया और खेल मंत्रालय के बीच लगातार टकराव सालभर सुर्खियों में बना रहा। हॉकी इंडिया के चुनाव बार-बार टलते रहे और जब चुनाव हुए तो वह खेल मंत्रालय के दिशानिर्देशों का पूरी तरह उल्लंघन कर हुए। 83 वर्ष की विद्या स्टोक्स अध्यक्ष चुनी गई लेकिन खेल मंत्रालय ने हॉकी इंडिया की मान्यता रद्द करते हुए भंग हो चुके भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) को बहाल कर दिया।
खेल मंत्रालय ने हालाँकि आईएचएफ को बहाल कर दिया मगर राष्ट्रमंडल और एशियाई टीमों में हॉकी इंडिया की टीमों ने हिस्सा लिया। स्टोक्स ने राष्ट्रमंडल खेलों के सफलतापूर्वक समाप्त हो जाने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। ब्रासा का कार्यकाल एशियाड के बाद पूरा हो गया लेकिन उन्हें नया अनुबंध नहीं दिया गया।
हॉकी इंडिया के चुनावों में स्टोक्स के खिलाफ खड़े हुए परगट सिंह ने अपनी पूरी ताकत हॉकी इंडिया के खिलाफ लगा रखी थी लेकिन वह चुनाव हार गए और हाल ही में उन्होंने हॉकी इंडिया से भी हाथ मिला लिया। इसी से पता चलता है कि हॉकी से जुडे हुए लोग कितने मौका परस्त हैं और मौका हाथ आने पर उसे भुनाने से नहीं चूकते।
लेकिन मौके चूकती है तो भारतीय हॉकी टीम जिसने हर वो अवसर गँवाया जो उसे पुराना स्वर्णिम अतीत दिला सकता था। मगर विश्वकप, राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में भारत के प्रदर्शन को देखकर अब यह कोई दावा नहीं कर सकता है कि भारतीय टीम यूरोप की टीमों का मुकाबला कर सकती है।
अपने घरेलू दर्शकों के सामने विश्वकप में भारत ने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 4-1 से पराजित कर जोरदार शुरुआत की थी मगर उसका दम इसी मैच के साथ निकल गया। ऑस्ट्रेलिया ने अगले मैच में उसे 5-2 से और फिर स्पेन ने 5-2 से पीट डाला। इंग्लैंड ने उसे 3-2 से हराया और दक्षिण अफ्रीका के साथ उसका मुकाबला 3-3 से बराबर रहा। भारत को सातवें-आठवें स्थान के मुकाबले में अर्जेंटीना से 2-4 से पराजय झेलनी पड़ी और विश्वकप में आठवें स्थान से संतोष करना पड़ा।
राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने मलेशिया को 3-2 से हराया लेकिन एक बार फिर वह ऑस्ट्रेलिया से 2 -5 से पिट गया। भारत ने फिर स्कॉटलैंड को 4-0 से और पाकिस्तान को 7-4 से पराजित किया। पाकिस्तान के खिलाफ यह प्रदर्शन भारतीय टीम का साल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। सेमीफाइनल में भारत ने टाईब्रेक में इंग्लैंड को 5-4 से हराया मगर स्वर्ण पदक के मुकाबले में उसे ऑस्ट्रेलिया से 0 -8 से बड़ी पराजय झेलनी पड़ी। यह भारत की सबसे शर्मनाक पराजय है।
एशियाई खेलों में भारत ने ग्रुप मैचों में तूफानी प्रदर्शन किया और सभी चार मैच जीते। उसने हांगकांग को 7-0 से, बांग्लादेश को 9-0 से, पाकिस्तान को 3-2 से और जापान को 3-2 से हराया। भारत को सेमीफाइनल में मलेशिया के खिलाफ जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन मलेशिया ने 4-3 से यह मुकाबला जीतकर भारत की ओलिम्पिक के लिए सीधा टिकट पाने की उम्मीदों को तोड़ दिया।
भारत ने तीसरे स्थान के मैच में दक्षिण कोरिया को 1-0 से हराकर काँस्य पदक हासिल किया लेकिन वह परिणाम नहीं था जिसकी भारत को सभी से उम्मीद थी। एशियाड के इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भारतीय हॉकी में एक बार फिर वही पुराना विवादों का दौर शुरू हो गया है।
कोच हरेन्द्र सिंह ने एशियाड के बाद इस्तीफा दे दिया, ब्रासा को नया अनुबंध नहीं मिला जबकि कप्तान राजपाल सिंह ने आरोप लगाया कि ब्रासा उन्हें हर कदम पर अपमानित किया करते थे। भारतीय टीम के पास फिलहाल कोई कोच नहीं है।
पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै ने कोच बनने की इच्छा जताई है लेकिन भारतीय टीम में जिस तरह खिलाड़ियों के बीच मतभेद दिखाई देते हैं, उसे देखते हुए किसी भी कोच का इस टीम के साथ सफल होना बहुत मुश्किल दिखाई देता है।
एशियाड में ओलिम्पिक के लिए सीधा टिकट पाने का भारत का सपना टूट चुका है और अब भारत को 2011 में ओलिम्पिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट की तलाश में जूझना होगा और 2012 के ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई करने की कोशिश करनी होगी। वरना मौजूदा हालात रहे तो भारतीय हॉकी का हाल वहीं होगा जो 2008 के पेइचिंग ओलिम्पिक से पहले क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में असफल होकर हुआ था। (वार्ता)