अब भी ये कि जैसे ताख पर हो कोई दीया अनवरत अँधेरा चीरता हुआ
अब भी सपने इतने निराले इन तहरीरों में जैसे कल ही तो देखा हो इनको
अब जाकर इनमें स्वप्न दिनों में कुछ-कुछ भूला कुछ-कुछ पाया
देखो तो अब कितना ताजा दम हूँ देखो तो चमत्कार अपने स्पर्श का देखो तो यह जीवन आँच भरी थी जो शब्दों में तुमने कभी घुल रही है रुधिर में मेरे धीरे-धीरे कि हरकत-सी हो रही है अब थमती हुई पुतलियों में।