जब कोई अपना अपना होकर भी पराया बन जाता है दिल के किसी कोने में छुपकर रोज खेलता रहता है लुकाछुपी का वह खेल करता रहता है परेशान मेरे दिल को
दिल के अंदर से छुप-छुप कर देखते रहता है मेरी आहें... और खुद चुपचाप बैठा तमाशा देखता रहता है।
कभी तो ऐसा लगता है कि बस अभी-अभी बोल पड़ेगा मेरा दिल और बंद हो जाएगा हमारा लुकाछुपी का खेल जो रोज आकर मुझे सताता है, परेशाँ करता है,
ऐ मेरे अपने दोस्त कहाँ है तू, जरा इधर तो आ मेरे दिल के दरवाजे पर दे एक दस्तक और बंद करके लुकाछिपी का खेल आजा.... हमेशा के लिए समाँ जा मेरे दिल के आशियाने में।