जब तुम मुझसे करोगे प्यार की बातें चाहे कितनी भी अनगढ़ हो तुम्हारी भाषा मैं थोड़ा अचकचा कर ठहाके लगाकर हँसूँगी ही और हो जाऊँगी खुद से बेखबर बावली-सी...
चाहे कितनी भी अनगढ़ हो तुम्हारी भाषा प्यार उमड़ घुमड़कर इस तरह घेर लेगा मुझे कि आधी रात जाग पडूँगी मैं हड़बड़ाकर जैसे एकाकी छूट जाऊँ मैं भरी भीड़ में मेरे अंदर जुनून में हहराने लगेंगे तुम्हारी स्मृतियों के ज्वार...
तुम्हें खूब मालूम है हतप्रभ हो जाऊँगी मैं दुनिया के दागे बस मामूली से ही किसी सवाल पर फिर प्यार इस तरह से ले लेगा आगोश में अपनी कि दुनिया को रख लूँगी मैं जूते की नोंक पर बस एक बार करो तो मुझसे तुम प्यार की बातें...
चाहे कितनी भी अनगढ़ हो तुम्हारी भाषा मैं दुत्कार दूँगा दुनिया को तुम्हारे सामने ही अब रात में कहाँ मूँदेंगी मेरी आँखें और भला कैसे हो पाएगा दिन में भी मुझसे कोई काम मेरा मन हुआ करेगा एकदम व्यस्त खींचने में रंगबिरंगे चित्र मनोभावों के आँखें होने लगेंगी भारी रोशनी से महरूम ये दुनिया लगने लगेगी मझे जैसे हो ही न कहीं कुछ...
मैं प्यार की वेदी पर चढ़ा दूँगी ये दुनिया जब तुम मुझसे करोगे प्यार की बातें चाहे कितनी भी अनगढ़ हो तुम्हारी भाषा
देखो तो, मैं वो अब रही ही कहाँ थी जो थोड़ी देर पहले तक...