तुम्हारा नाम मेरे कुरते के पॉकेट पर अब जा उड़ा धोते वक्त असम में उस कुरते के रंग भीग-भीगकर लट-पटा गए कई-कई कुरतों में संभाल रखा हूँ तकिये के नीचे कच्ची उम्र के भाषणों में तू होती थी सामने पहले बेंच पर संत बराहना कॉलेज में तुम्हारा नाम लेने में अपना भाषण भूल बैठता तू गुस्साती मुस्काती बताती चली गई एक पी.ओ. लड़के के पास जिसने बाँध रखा है कई दीवारों के बीच मेरा रंग रंग-बिरंगा होते-होते एक नाम लिख रहा है अपनी चमक के साथ जिसकी परछाई मेरी पीठ पर हौले से पड़ रही है।
सन् 1991 से पहले जिस लाजवाब वादों के साथ मिले उसकी याद तुम्हारे जाते वक्त आरा प्लेटफार्म पर और वीरकुँवर सिंह पार्क में लपेटा गया आज यह रंग ज्यों का त्यों है तुम्हारे पसीने के गंध और हाँफ की आवाज के साथ एक फूल उदास है दूसरे फूल के बिना।