(एक) पर्वत से लुढ़कने, और फिर चढ़ने, कहीं अधबीच में एक चट्टान से उलझी हुई शाखा को पकड़ने, और फिर फिसलने के क्रम में, किसी फूल की सुगंध में - कुछ देर विचरने का अनुभव!
कलरव चिड़ियों का। घनी छाया का आश्वासन अगले कदम पर। एकदम निर्मल आकाश में श्वास!
(दो) दोनों किनारों के बीच मँझधार में एक नाव। शांत निश्चल पल। जल ही जल चारों ओर। धुँधलाता हुआ हर तरफ का शोर। खुलती हुई खिड़कियाँ दिशाओं की!
(तीन) नींद में एक मुख, ढका हुआ झीने वसन में, झीना। और उसके भीतर के सपनों की तहें। कुछ भी न कहें। उसी अनजाने सुख में रहें - भीतर तक मौन!!
(चार) चपल चंचल एक गति, जैसा कि हिरण हवा में अश्व एक, पैरों को उठाए- उड़ती चली जाती चिड़िया किसी घाटी में।
विद्यतु तरंग।
दौड़ते चले आते इसी ओर कई-कई रंग फिर उनमें से करता विलग एक अपने को, आ रहता सामने!
(पाँच) एक मिली हुई निधि। बार बार आ रहती निकट। हर करवट। कोई विधि जिससे थम जाता है जलधि - और फिर उठता है ज्वार!! अपार!