रूठे दिलबर को मनाने के लिए शेर
मान लो तुमसे रूठ जाए कोई
तुम भला किस तरह मनाओगे
-'फिराक' गोरखपुरी
न बन पड़ा कोई उज़्रे जफ़ा किसी से तो हाय
अदा वो याद है, घबरा के रूठ जाने की
-फ़ानी' बदायूँनी
पहले इसमें इक अदा थी, नाज़ था, अंदाज़ था
रूठना अब तो तेरी आदत में शामिल हो गया
-आग़ा 'शायर'
शिकवा किया था अज़ रहे-उल्फ़त, तंज़ समझकर रूठे हो
हम भी नादिम अपनी ख़ता पर, आओ, तुम भी जाने दो
-'असर' लखनवी
मिलती नहीं अभी नज़र, देखते हैं इधर-उधर
मन तो गए हैं वो मगर, दिल में है कुछ ग़ुबार-सा
-'आशिक़' टोंकवी
ये गुस्ताख़ी, ये छेड़ अच्छी नहीं है, ऐ दिले-नादाँ
अभी फिर रूठ जाएँगे, अभी वो मन के बैठे हैं
-'दाग'
छेड़ कैसी, बात कहते रूठ जाते हैं 'रियाज़'
इक हँसी हर वक्त हो उनको मनाने के लिए
-रियाज़ ख़ैराबादी
रूठने को तो चले रूठ के हम उनसे भले
मुड़ के तकते थे कि अभी कोई मनाकर ले जाए
-इलाहीबख़्श ख़ाँ 'मारूफ़'
लाए उस बुत को इल्तिजा करके
कुफ़्र टूटा ख़ुदा-ख़ुदा करके
-दयाशंकर 'नसीम'