यूँ वक्त-बेवक्त तुम दस्तक दिल पर दिया न करो दीये उम्मीदों के जलाकर रातों में आवाज दिया न करो। यूँ तो...
प्यार, प्रेम मोहब्बत
कहने को कितने हैं शब्द
और क्यों,
महसूसने को कुछ भी नहीं।
शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010
बस, एक कोई बात
तुम कहते हो यूँ ही
और देर तक
मेरे मन के आँगन में
खेलती है तुम्हारी
यादों की कोमल
यारों के घर देख लिए
सारे मंज़र देख लिए,
जो भी थे बुनियाद में शामिल
वो भी पत्थर देख लिए ...
जब तोड़ा था मेरे लिए तुमने
अपनी क्यारी से पीला फूल
यहाँ मेरी जुल्फें लहराई थी।
तुम्हारा एक चुटकी प्यार
दब रहा है
एक मुट्ठी गुस्से के नीचे
तुम्हारी एक पल की झलक
धुँधला रही है
...
बीते दिन की कच्ची यादें
चुभती है बन कर शूल,
मत आना साथी लौटकर
अब गई हूँ तुमको भूल।