जब भी मैं तुम्हारी यादों में मुस्कराता हूं,
तुम पिंजरे के पास जाकर गौरेया को पुचकारती हो।
अक्सर मेरे फोटो को एकटक देखकर,
करती हो अनकही बातें जो तुम कभी न कह सकी।
बच्चों को अपने पास बैठाकर मेरी तरह,
कोशिश करती हो उन्हें जिंदगी के पाठ पढ़ाने की।
जब भी मंदिर में जाकर कान्हा की मूर्ति के सामने,
बंद आंखों में मुझे देख सिसक लेती हो।
लम्हा-लम्हा-सा बहता है जिंदगी का सफर,
सब रिश्तों से आंख बचाकर रो लेती हो।