प्रणय गीत : अतरंगाभूति

प्रणय बंधन का अलौकिक आनन्द
प्रिय स्मृति हर पल आता है
है गणना में बीते हुए पल चन्द
मूर्छा बिरह में कर जाता है
हटने पर मूर्छा है कोमलांगी
दिल हर बार ये पुकार लगाता है
अपनी बांहों को फैलाएं प्रिय
आलिंगन हेतु कटिबद्ध रहो
अधरपान हेतु अधरों को 
मम अधरों से आबद्ध करो
तेरी झुकी नजरों से हम ये जान गए
लज्जा है तेरा श्रृंगार बना 
संगनी मेरी से व्यक्तित्व तेरा
राग-रागनी सा खिल उठा।
अर्द्धांगिनी से तब रग-रग में
'पीव' जैसे हो मधुमास सना।

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