उसी क्षण मैं तुमसे एक प्रगाढ़ बंधन में बंध गई
तुम पर अधिकार मेरी आश्वस्ति था
तुम केवल मेरे हो ये विश्वास मेरी साधना थी..
कि मेरा अधिकार ही उसका जीवन है..
परंतु कभी कभी
जब तुम कुछ अन्यमनस्क होते हो
या बेपरवाह बेफ़िक्र होते हो
या कुछ विरक्त दिखाई देते हो
या अपने पुरुषत्व के अहं में लीन रहते हो
तब तुम्हारे ऊपर अपने अधिकार पर संशय होने लगता है
प्रेमाधिकार जताना कठिन हो जाता है
तब प्रेम की वीणा असाध्य लगने लगती है
कर्तव्य बोझिल लगने लगते हैं..
सुनो अधिकार का आश्वासन ही
स्त्री को अविभाज्य रखता है
तुम अधिकारों की सतलड़ी पहनाते रहो