कोई अनजान आकर धकेल देता है अंधेरे में
सारे स्पर्श गुम हो जाते हैं धीमे-धीमे
मैं हर बार देह में एक नई गंध को देखता हूं
नीले दुप्पटे उड़ते हैं हवा में
कितनी ही दुनियाएं पुकारती हैं मुझे अपनी तरफ़
कितने ही हाथ इशारा करते हैं
फिर भी इस दुनिया में, मैं एक पूरा आदमी नहीं
मैं बहुत सारे टुकड़े हूं
जितनी बार मिलता हूं तुमसे