रिश्तों को आजकल हुआ क्या है ?

प्रीति सोनी 

रिश्तों को आजकल ये हुआ क्या है, 
हर रिश्ता कुछ ही वक्त में दरक जाता है।   
 
रिश्तों से बड़ी हो गई ,छोटी गलतियां,
विश्वास अब हालातों से  सरक जाता है । 
 

 
समेटने जाएं तो जर्रा है ये पर,  
रेत सा मुटठी से यूं ही फिसल जाता है ।
 
महकते गुलशन में भी लग जाती है,  
आग अब तो... 
भरी बारिश में भी अंगार सुलग जाता है । 
 
न बचा पाओ तो तोड़ ही डालो इसको, 
जाते जाते ये देकर के सबब जाता है।  
 
रिश्तों को आजकल ये हुआ क्या है, 
हर रिश्ता कुछ ही वक्त में दरक जाता है। 


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