प्रेम कविता : प्रेम दीवानी

दगाबाज तूने दाग लगाया,
मैं दाग छुपाए घूम रही हूं,
गली-गली तुम्हें ढूंढ रही हूं। 


 
सोलह साल मेरी उम्र थी,
थी कोमल कच्ची-कुंआरी।
आंखों का जादू चला के तूने,
बना दिया प्रेम दीवानी।
 
तेरे बिना अब रह नहीं पाती,
तेरे विरह में सूख रही हूं।
गली-गली तुम्हें ढूंढ रही हूं,
गली-गली तुम्हें ढूंढ रही हूं।
 
खुशी के मोती हमें खिला के,
प्रेम-मोह की लगन लगा के।
मन में अपना दीप जला के,
चमन बाग में कली खिला के।
 
सातों जनम का नाता जोड़ के,
तेरे चरणों को चूम रही हूं।
गली-गली तुम्हें ढूंढ रही हूं,
गली-गली तुम्हें ढूंढ रही हूं।

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