आवाज़

मीनाक्षी जिजीविषा

तुम्हारी आवाज़
बदल देती है
मेरे भीतर के, सारे के सारे मौसम
खिल उठते हैं मुझमें
सभी देशों के, सभी मौसमों के
सारे अनदेखे अनजाने फूल
तुम्हारी आवाज़
खींच लाती है बाहर मुझे
अविश्वास और अवसाद की गहन गुहाओं से
हाथ पकड़ ले चलती है मुझे
सुख की अनदेखी, अनजान यात्राओं पर
तुम्हारी आवाज़
अकेले, उदास समय में
मेरा संबल
हाथ थामा जिसका, उतरती हूँ मैं
एक नई इंद्रधनुषी, प्रेममयी दुनिया में।
तुम्हारी आवाज़
समय के अँधियारे को चीरती हुई
भर देती है मुझे रोशनी से
और जगाती है मुझमें
जिजीविषा।

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