क्यों ख्‍वाबों में आ जाती हो

शशींद्र जलधारी

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इश्क-मोहब्बत जैसे लफ्ज मेरे जीवन में बेमाने,
इनका जिक्र भी लगता है मेरी आँखों को बरसाने।

मुझको वीराने में छोड़ तोड़ चुकी हो सारे रिश्ते,
फिर क्यों ख्‍वाबों में आ जाती हो मुझको तरसाने।

जिंदगी के नए पड़ाव की ओर बढ़ चला हूँ मैं,
भूल चुका हूँ अब वो सारे बीते अफसाने।

तुम्हारी बेवफाई ने मुझको बहुत सिखाया है,
वफा के सारे किस्से लगते अब मुझको बचकाने।

दिल की बगिया को हमने था मिलकर महकाया,
देखो माली की नफरत से फूल लगे कुम्हलाने।

नीरस जीवन में रस भरने की मुझको अब चाह नहीं,
ख्‍यालों में भी मत आया करो मेरा दिल बहलाने।

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