मेरी प्रेरणा
तुम, संध्या के रंगों में आती
और आकर मंडराती
फिर बुलबुल बन, मन के बन को
यादों की गलियों से
कभी तुम गुजरना नहीं
पी लेना अश्क पर
आँख भिगोना नहीं
देखो तुम रोना नहीं।
तुम जहाँ मुझे मिली थीं
वहाँ नदी का किनारा नहीं था
पेड़ों की छाँह भी नहीं
आसमान में चन्द्रमा नहीं
एक बार फिर
काश, एक बार फिर
मैं निकलूँ उस मोड़ पर
और तुम वहाँ रुकी मिलो ...
दिलकश मेरी रातें होती रहीं
, चाँद से मेरी बातें होती रहीं
जिस तरह मिल रहे हैं ज़मीं आसमाँ
उस तरह म...
हम तेरे ग़म में इस कदर डूबे
जैसे ग़ज़लों में सुखनवर डूबे
दिल की गहराइयों को नाप लिया
मेरे सीने में
जीवन का उपहार मुहब्बत
खुशियों का आधार मुहब्बत
शक का अंकुर फूट पड़े तो
हो जाती लाचार मुहब्बत ...
लोगों में रहता हूँ अकेला
कोरे कागजों को निहारता हूँ
ध्यान से अखबार बासी लगता है आते ही।