हेलो दोस्तो! समय बहुत तेजी से बदल रहा है और इसके साथ ही सामाजिक हालात एवं नजरिया भी। कल तक जो मूल्य हम विदेशी सभ्यता का हिस्सा समझकर दूसरों के लिए सोचते थे वे सभी हमारे साथ-साथ चलने लगे हैं। अब हमारे यहाँ भी शराबी या जालिम पति को हर हाल में निभाने के बजाय औरतें बड़ी आसानी से तलाक दे देती हैं।
दुर्भाग्यवश संतानों को माँ या पिता का ही प्यार मिल पाता है। कहने का अर्थ यह है कि अकेले कहलाने के लोकलाज के कारण अब रिश्ते को खींचते रहना समाप्त होता जा रहा है।
इससे भी अधिक अच्छी बात यह हुई है कि किसी भी उम्र में लोग साथी की तलाश करने से परहेज नहीं करते हैं। बेशक वे एकल (सिंगल) माता या पिता ही क्यों न हों। आज हर अकेला व्यक्ति एक साथी की तलाश में रहता है। निराशा को ही स्थाई दुर्भाग्य न मानकर भरपूर जीवन जीने का उत्साह मन में बसाना ही इस समय का सबसे बड़ा सकारात्मक सामाजिक बदलाव है। पिछले बुरे अनुभव के बावजूद सही खुशी की तलाश, समाज के प्रति नफरत नहीं बल्कि प्यार का प्रतीक है।
पर हैरानी तब होती है जब किसी के दोस्त बनते ही उससे जीवन भर का वायदा लेने की हड़बड़ी दिखाई जाती है। बुरे अनुभव के बाद भी विश्वास नहीं टूटना बहुत ही सराहनीय व खुशनुमा भावना है। लेकिन किसी के मिलते और हमदर्दी जताते ही जीवन साथी बनाने का दबाव डालना न केवल गलत है बल्कि मूर्खता है। इस मामले में लड़कियाँ या औरतें ज्यादा जल्दबाजी करती हैं।
खासकर यदि वे छोटे बच्चों की माँ हैं और अकेली हैं। अपने निकम्मे या शराबी या जालिम पति से छुटकारा लेने के बाद उनका निर्णय बहुत ही तुरत-फुरत होने लगता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह होती है कि आत्मनिर्भर होने के बावजूद उन्हें मानसिक रूप से किसी सहारे की जरूरत पड़ती है।
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निसंदेह बहुत से मामले में एक मर्द का साथ वर्तमान सामाजिक ढांचा में मुश्किलें आसान करता है। उनके मानस पटल पर अंकित पारंपरिक रोल के कारण यह बात भी उन्हें उकसाती है कि परिवार का कर्ताधर्ता कोई हो। वह एक हाउस वाइफ नहीं होने के बावजूद अपनी बहुत सारी जिम्मेदारी किसी मर्द के ऊपर छोड़ना चाहती हैं। भले ही पिछला अनुभव उनका बिल्कुल उलट रहा हो और पूरे परिवार एवं घर को उन्होंने ही संभाला हो, इसके बावजूद एक पुरानी छवि वाले जीवनसाथी की तलाश जारी रहती है। गहराई से देखा जाए तो इस मानसिकता से निकलना ही सही साथी को पाने की ओर बढ़ता कदम हो सकता है।
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किसी भी कारणवश जब दो अकेले पड़ गए लोग आपस में मिलते हैं तो धीरे-धीरे वे दोस्त बन जाते हैं और समय पड़ने पर एक दूसरे को सहारा देते हैं इससे उनकी नजदीकियाँ बढ़ती जाती हैं बल्कि वे एक-दूसरे पर कई मामले में निर्भर भी करने लगते हैं। ऐसे मामलों में सिंगल औरत की कई समस्याएँ, विचार-विमर्श द्वारा तथा थोड़ी मदद से आसानी से सुलझने लगती हैं। जीवन सहज लगने लगता है।
खुशी के अहसास को और भी जवां करने के लिए अगर साथी कई बार ढेर सारी तारीफों के साथ, 'मैं तुम्हें पसंद करता हूँ और प्यार करता हूँ' यह भी कह देता है तो बस समझिए की यहीं पर उस आदमी पर आफत आ जाती है। उससे बार-बार जीवन भर साथ निभाने का वायदा माँगा जाता है। हमसफर बनने या साथ रहने जैसे सवाल के जवाब माँगे जाते हैं। इस जल्दबाजी में बहुत से अहम मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
धीरे-धीरे दो तजुर्बेकार व्यक्तियों के बीच जो परिपक्व सा मजबूत रिश्ता पनप रहा होता है। उस पर बेवजह ढेर सारा दबाव डाल दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि एक बेहद खूबसूरत सा रिश्ता परवान चढ़ने के पहले ही कमजोर एवं विकृत होकर दम तोड़ने लगता है। हम शायद भूल जाते हैं कि हर चीज का समय होता है। खासकर रिश्ते अपना आकार समय के साथ ही लेते हैं। बस अपनी जिम्मेदारियाँ अपने प्यार करने वालों पर थोपकर ही प्यार का सबूत माँगना साथी के साथ नाइंसाफी है।
बुरे अनुभवों से निकलकर यदि जीवन में स्थाई प्यार का मजा लेना है तो आत्मनिर्भर बनें और प्यार को परिपक्व होने दें। याद रखें परिपक्व प्रेम ही स्थाई प्रेम होता है।