बहुत से लोगों के जीवन में आकस्मिक संकट आते हैं। बहुत से लोगों को अथक परिश्रम करने के बाद भी सफलता नहीं मिल पाती है। जिंदगी एक संघर्ष बन जाती है। कोई कभी शायद ही यह सोचता होगा कि ऐसा क्यूं हो रहा है। हालांकि बहुत से लोग ऐसे हैं जो अपने कर्मों से ही अपना भाग्य बिगाड़ लेते हैं।
लोगों को जानकारी नहीं है इसलिए वे ऐसे कर्म करते हैं तो उनके जीवन को संकट में डाल देते है। हिन्दू धर्म अनुसार अज्ञान ही दुख का कारण है। अधिकतर लोग धर्म की जानकारी को अंधविश्वास मानकर उसको फॉलो नहीं करते हैं, लेकिन उसमें कहीं न कहीं सच्चाई जरूर होती है।
हिन्दू धर्म में ऐसी हजारों बातों का उल्लेख है जिनको जानकर जीवन में चल रहे संकट, असफलता, अलगाव, भ्रम, भटकाव, अस्वस्थता आदि तरह के संघर्षों से बचा जा सकता है। यदि आप नीचे बताए जा रहे 10 उपायों की लिस्ट में से सिर्फ एक पर भी अमल कर लेंगे तो निश्चित ही आप संघर्ष से बाहर निकलने लगेंगे।
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दिशाशूल मूलत: किसी दिशा विशेष में दिन विशेष पर की जाने वाली यात्रा से संबंधित है। अगर किसी कारणवश उक्त दिशा में यात्रा करनी भी पड़े तो उसके निवारण के कुछ आसान से उपाय होते हैं जिन्हें जानकर यात्रा को निर्विघ्न बानाया जा सकता है।
किस दिशा में होता कब दिशाशूल:- 1. सोमवार और शुक्रवार को पूर्व 2. रविवार और शुक्रवार को पश्चिम 3. मंगलवार और बुधवार को उत्तर 4. गुरुवार को दक्षिण 5. सोमवार और गुरुवार को दक्षिण-पूर्व 6. रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम 7. मंगलवार को उत्तर-पश्चिम 8. बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व
राहुकाल : जब कोई कार्य पूर्ण मेहनत किए जाने के बाद भी असफल हो जाए या उस कार्य के विपरीत परिणाम जाए, तो समझ लीजिए आपका कार्य शुभ मुहूर्त में नहीं हुआ बल्कि राहुकाल में हुआ है। राहुकाल में शुभ कार्य करना वर्जित है।
क्या होता राहुकाल? : राहुकाल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है। राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। राहुकाल को छायाग्रह का काल कहते हैं। उक्त डेढ़ घंटा कोई कार्य न करें या किसी यात्रा को टाल दें।
कब होता है राहुकाल- * रविवार को शाम 4.30 से 6.00 बजे तक राहुकाल होता है। * सोमवार को दिन का दूसरा भाग यानी सुबह 7.30 से 9 बजे तक राहुकाल होता है। * मंगलवार को दोपहर 3.00 से 4.30 बजे तक राहुकाल होता है। * बुधवार को दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक राहुकाल माना गया है। * गुरुवार को दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक का समय यानी दिन का छठा भाग राहुकाल होता है। * शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहुकाल होता है यानी सुबह 10.30 बजे से 12 बजे तक का समय राहुकाल है। * शनिवार को सुबह 9 बजे से 10.30 बजे तक के समय को राहुकाल माना गया है।
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कुछ खास दिन : मान्यता अनुसार कुछ खास दिनों में कुछ खास कार्य करने से बचना चाहिए। ये कुछ खास दिन यहां प्रस्तुत हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि तेरस, चौदस, पूर्णिमा, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 5 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है, क्योंकि इन दिनों में देव और असुर सक्रिय रहते हैं।
अमावस्या : अमावस्या को हो सके तो यात्रा टालना चाहिए। किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करना चाहिए। इस दिन राक्षसी प्रवृत्ति की आत्माएं सक्रिय रहती हैं। यह प्रेत और पितरों का दिन माना गया है। इस दिन बुरी आत्माएं भी सक्रिय रहती हैं, जो आपको किसी भी प्रकार से जाने-अनजाने नुकसान पहुंचा सकती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
पूर्णिमा : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं इसलिए पूर्णिमा की रात में चांद की रोशनी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। पूर्णिमा की रात में कुछ देर चांदनी में बैठने से मन को शांति मिलती है। कुछ देर चांद को देखने से आंखों को ठंडक मिलती है और साथ ही रोशनी भी बढ़ती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
उपाय : अमावस्या या पूर्णिमा के दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं फिर एक मिट्टी का दीपक हनुमानजी के मंदिर में जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। अमावस्या पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस दिन तुलसी के पत्ते या बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
1. प्रतिपदा को कुष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। 2. द्वितीया को छोटा बैंगन व कटहल खाना निषेध है। 3. तृतीया को परमल खाना निषेध है, क्योंकि यह शत्रुओं की वृद्धि करता है। 4. चतुर्थी के दिन मूली खाना निषेध है, इससे धन का नाश होता है। 5. पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है अत: पंचमी को बेल खाना निषेध है। 6. षष्ठी के दिन नीम की पत्ती खाना एवं दातुन करना निषेध है, क्योंकि इसके सेवन से एवं दातुन करने से नीच योनि प्राप्त होती है। 7. सप्तमी के दिन ताड़ का फल खाना निषेध है। इसको इस दिन खाने से रोग होता है। 8. अष्टमी के दिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है। 9. नवमी के दिन लौकी खाना निषेध है, क्योंकि इस दिन लौकी का सेवन गौ-मांस के समान है। 10. दशमी को कलंबी खाना निषेध है। 11. एकादशी को सेम फली खाना निषेध है। 12. द्वादशी को (पोई) पुतिका खाना निषेध है। 13. तेरस (त्रयोदशी) को बैंगन खाना निषेध है। 14. अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है। 15. रविवार के दिन अदरक भी नहीं खाना चाहिए। 16. कार्तिक मास में बैंगन और माघ मास में मूली का त्याग करना चाहिए। 17. अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए। 18. जो भोजन लड़ाई-झगड़ा करके बनाया गया हो, जिस भोजन को किसी ने लांघा हो तो वह भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह राक्षस भोजन होता है। 19. जिन्हें लक्ष्मी प्राप्त करने की लालसा हो उन्हें रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए, यह नरक की प्राप्ति कराता है।
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धर्म का पालन करें : निम्न कार्यों को करने से जीवन में सकारात्मकता का विकास होगा और आप संकटों से बचे रहेंगे। बहुत से लोग ये उपाय आजमाकर सुखी हो गए हैं।
इन नियमों का पालन करें :- 1. प्रतिदिन मंदिर जाकर संध्या वंदन करें। देवी-देवता या धर्म का अपमान अनजाने में भी न करें। 2. प्रमुख त्योहारों के दिन पवित्र रहकर वर्ष में एक बार तीर्थ स्नान करें। दिन में यज्ञ करें। 3. वेदों में बताए गए प्रमुख 16 संस्कारों का वेद-रीति से पालन करें। 4. प्रतिदिन योग करें और आयुर्वेद को अपनाएं और व्रतों का पालन करें। 5. स्त्री का सम्मान करें और बेटी को प्रेम और शिक्षा दें। 6. जिस भी तरह हो, समाज और धर्म की सेवा करें। 7. भगवान श्रीकृष्ण का घर में बड़ा-सा चित्र लगाएं। घर को वास्तु अनुसार ढालें और पेड़-पौधें लगाएं। 8. रात्रि के समय कोई-सा भी मांगलिक कार्य न करें जैसे विवाह, पूजा, उत्सव, यज्ञ आदि। रात्रि को भगवान का जप, भजन, पाठ कर सकते हैं। 9. श्राद्ध पर्व, कृष्ण जन्माष्टमी, राम नवमी, नवरात्रि, शिवरात्रि, एकादशी, श्रावण सोमवार का अच्छे से पालन करें।
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1. ये तीन ऋण हैं:- 1. देव ऋण, 2. ऋषि ऋण और 3. पितृ ऋण। इन्हें उतारने का प्रयास करें। तीन ऋण नहीं चुकता करने पर उत्पन्न होते हैं त्रिविध ताप अर्थात सांसारिक दुख, देवी दुख और कर्म के दुख।
2. चार तरह की वाणी : परावाणी (देव वचन), पश्यंति वाणी (हृदय से निकले वचन), मध्यमा वाणी (विचारपूर्वक बोले गए वचन), बैखारी वाणी (बगैर सोचे-समझे बोले गए वचन)। बोलने से ही सत्य और असत्य होता है। अच्छे वचन बोलने से अच्छा होता है और बुरे वचन बोलने से बुरा, ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं।
3. एकेश्वर : यह अच्छी तरह से मन में बैठा लें कि ईश्वर (ब्रह्म) से बढ़कर कोई भी दूसरी सत्ता नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश या अन्य कोई भी देवी-देवता ईश्वर नहीं हैं। सबका मालिक सिर्फ एक ही है। बहुत से लोग कभी किसी देवता को तो कभी किसी देवी को पूजने लगते हैं और हर किसी से मन्नत मांगते रहते हैं। ऐसे लोग भ्रम में ही जीते हैं और देवी-देवता भी उनका साथ नहीं देते इसलिए एक ईष्ट देव बनाएं और जीवनभर उसी की भक्ति करें।
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दस पुण्य कर्म-
1. धृति- हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना। 2. क्षमा- बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना। 3. दम- उद्दंड न होना। 4. अस्तेय- दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना। 5. शौच- आहार की शुद्धता। शरीर की शुद्धता। 6. इंद्रिय निग्रह- इंद्रियों को विषयों (कामनाओं) में लिप्त न होने देना। 7. धी- किसी बात को भलीभांति समझना। 8. विद्या- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान। 9. सत्य- झूठ और अहितकारी वचन न बोलना। 10. अक्रोध- क्षमा के बाद भी कोई अपमान करें तो भी क्रोध न करना।
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दस पाप कर्म-
1. दूसरों का धन हड़पने की इच्छा। 2. निषिद्ध कर्म (मन जिन्हें करने से मना करें) करने का प्रयास। 3. देह को ही सब कुछ मानना। 4. कठोर वचन बोलना। 5. झूठ बोलना। 6. निंदा करना। 7. बकवास (बिना कारण बोलते रहना)। 8. चोरी करना। 9. तन, मन, कर्म से किसी को दु:ख देना। 10. पर-स्त्री या पर-पुरुष से संबंध बनाना।
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किसी भी ग्रह से आपके जीवन में प्रॉब्लम क्रिएट हो रही है तो घबराने की आवश्यकता नहीं। सबसे पहले यह जानें की कौन-सा ग्रह प्रॉब्लम क्रिएट कर रहा है, फिर उस ग्रह से संबंधित नीचे लिखे टोटके या उपाय करें।
1. सूर्य : मुंह में मीठा डालकर ऊपर से पानी पीकर ही घर से निकलें। बहते पानी में गुड़ प्रवाहित करें। पिता या पिता समान व्यक्ति का सम्मान करें।
2. चंद्र : दूध या पानी से भरा बर्तन रात को सिरहाने रखें और सुबह उसे बबूल के पेड़ में डाल दें। चावल, सफेद वस्त्र, शंख, वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बैल, दही और मोती दान करना चाहिए।
3. मंगल शुभ : शुभ हो तो मिठाई या मीठा भोजन दान करें। बताशे बहते पानी में प्रवाहित करें।
4. मंगल अशुभ : अशुभ हो तो बहते पानी में तिल और गुड़ से बनी रेवड़ियां प्रवाहित करें। मंगल खराब की स्थिति में सफेद रंग का सूरमा आंखों में डालना चाहिए। भाई और मित्रों से संबंध अच्छे रखना चाहिए।
5. बुध : सिक्के बराबर तांबे के पतरे में छेद करके उसे बहते पानी में प्रवाहित करें। नाक छिदवाना। बेटी, बहन, बुआ और साली से अच्छे संबंध रखें। बुधवार के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं। साबूत हरे मूंग का दान करें।
6. बृहस्पति : केसर को नाभि पर लगाएं। हल्दी की गांठ घर में रखें। पिता, दादा और गुरु का आदर करना न भूलें। घर में धूप-दीप देते रहें।
7. शुक्र : सफेद वस्त्र दान करें। भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कौवे और कुत्ते को दें। दो मोती लेकर एक पानी में बहा दें और एक जिंदगीभर अपने पास रखें। स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें और हमेशा साफ कपड़े पहनें। सुगंधित इत्र या सेंट का उपयोग करें। जुवार या चने का चारा गाय को खिलाएं या किसी को दान करें। पत्नी का ध्यान रखें उसका कभी भी अपमान न करें।
8. शनि : तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। छायादान करें अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापों की क्षमा मांगते हुए रख आएं।
9. राहु : मूली के पत्ते निकालकर दान करें। मूली को रात को सिरहाने रखकर उसे सुबह मंदिर में दान करें। किचन में बैठकर ही भोजन करें। ससुराल पक्ष से अच्छे संबंध रखें। सिर में चोटी रखें।
10. केतु : संतानें केतु हैं इसलिए संतानों से संबंध अच्छे रखें। दोरंगी कुत्ते को रोटी खिलाएं। कान छिदवाएं। कुत्ता पाल सकते हैं।
नोट : उक्त उपाय लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछ कर ही करें।
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1. प्रतिदिन हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुंदरकांड पढ़ें। 2. प्रतिदिन गीता का पाठ करें। 3. प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जप करें। 4. प्रतिदिन मंदिर में जाकर प्रार्थना करें (पूजा नहीं)। 5. प्रतिदिन ॐ के जाप के साथ ध्यान करें। 6. नकारात्मक बातें करने वालों से दूर रहें। 7. विचारों और भावों की दिशा को सकारात्मकता की ओर मोड़ें। 8. अच्छा संगीत सुनें, भजन सुनें या शास्त्रीय संगीत से जुड़ें। 9. अच्छे विचारकों जैसे ओशो, श्रीश्री, जे. कृष्णमूर्ति के प्रवचन सुनें। 10. क्रोध करना, झूठ बोलना, दोहरी बात करना, धोखा देना, ईर्ष्या या शत्रुता रखना बंद कर दें।