देवी-देवता 33 कोटि नहीं 33 करोड़ ही हैं, जानिए इस सत्य को. . .
गुरुवार, 10 नवंबर 2016 (10:48 IST)
लेखक : श्रीभागवतानंद गुरु (Shri Bhagavatananda Guru)
देवता वास्तव में 33 करोड़ ही हैं, 33 प्रकार के नहीं। आमतौर पर जो लोग यह समझते हैं कि 33 कोटि शब्द में कोटि का अर्थ 'प्रकार' है, वे अपनी बात के समर्थन में निम्न बातें करते हैं।
भ्रमपूर्ण तर्क : उनका कहना है कि हिन्दू धर्म को भ्रमित करने के लिए अक्सर देवी और देवताओं की संख्या 33 करोड़ बताई जाती रही है। धर्मग्रंथों में देवताओं की 33 कोटि बताई गई है, करोड़ नहीं। जिस प्रकार एक ही शब्द को अलग-अलग स्थान पर प्रयोग करने पर अर्थ भिन्न हो जाता है, उसी प्रकार देवभाषा संस्कृत में कोटि शब्द के दो अर्थ होते हैं।
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता है लेकिन यहां कोटि का अर्थ प्रकार है, करोड़ नहीं। इस बात के समर्थन में वे यह भी कहते हैं कि ग्रंथों को खंगालने के बाद कुल 33 प्रकार के देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है। ये निम्न प्रकार से हैं-
12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं।
33 देवी और देवताओं के कुल के अन्य बहुत से देवी-देवता हैं तथा सभी की संख्या मिलाकर भी 33 करोड़ नहीं होती, लाख भी नहीं होती और हजार भी नहीं। वर्तमान में इनकी पूजा होती है।
उपरोक्त तर्क का खंडन :
प्रथम तो कोटि शब्द का अर्थ करोड़ भी है और प्रकार भी है, इसे हम अवश्य स्वीकार करते हैं, परंतु यह नहीं स्वीकार करते कि यहां कोटि का अर्थ करोड़ न होकर प्रकार होगा। पहले तो कोटि शब्द को समझें। कोटि का अर्थ प्रकार लेने से कोई भी व्यक्ति 33 देवता नहीं गिना पाएगा। कारण, स्पष्ट है कि कोटि यानी प्रकार यानी श्रेणी। अब यदि हम कहें कि आदित्य एक श्रेणी यानी प्रकार यानी कोटि है, तो यह कह सकते हैं कि आदित्य की कोटि में 12 देवता आते हैं जिनके नाम अमुक-अमुक हैं। लेकिन आप ये कहें कि सभी 12 अलग-अलग कोटि हैं, तो जरा हमें बताएं कि पर्जन्य, इन्द्र और त्वष्टा की कोटि में कितने सदस्य हैं?
ऐसी गणना ही व्यर्थ है, क्योंकि यदि कोटि कोई हो सकता है तो वह आदित्य है। आदित्य की कोटि में 12 सदस्य, वसु की कोटि या प्रकार में 8 सदस्य आदि-आदि। लेकिन यहां तो एक-एक देवता को एक-एक श्रेणी अर्थात प्रकार कह दिया है।
द्वितीय, उन्हें कैसे ज्ञात कि यहां कोटि का अर्थ प्रकार ही होगा, करोड़ नहीं? प्रत्यक्ष है कि देवता एक स्थिति है, योनि हैं जैसे मनुष्य आदि एक स्थिति है, योनि है। मनुष्य की योनि में भारतीय, अमेरिकी, अफ्रीकी, रूसी, जापानी आदि कई कोटि यानी श्रेणियां हैं जिसमें इतने-इतने कोटि यानी करोड़ सदस्य हैं। देव योनि में मात्र यही 33 देव नहीं आते। इनके अलावा मणिभद्र आदि अनेक यक्ष, चित्ररथ, तुम्बुरु, आदि गंधर्व, उर्वशी, रम्भा आदि अप्सराएं, अर्यमा आदि पितृगण, वशिष्ठ आदि सप्तर्षि, दक्ष, कश्यप आदि प्रजापति, वासुकि आदि नाग, इस प्रकार और भी कई जातियां देवों में होती हैं जिनमें से 2-3 हजार के नाम तो प्रत्यक्ष अंगुली पर गिनाए जा सकते हैं।
शुक्ल यजुर्वेद ने कहा : अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवतादित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता।
अथर्ववेद में आया है : अहमादित्यरुत विश्वेदेवै।
इसमें अग्नि और वायु का नाम भी देवता के रूप में आया है। अब क्या ऊपर की 33 देव नामावली में ये न होने से देव नहीं गिने जाएंगे? मैं ये नहीं कह रहा कि ये ऊपर के गिनाए गए 33 देवता नहीं होते बिलकुल होते हैं लेकिन इनके अलावा भी करोड़ों देव हैं।
भगवती दुर्गा की 5 प्रधान श्रेणियों में 64 योगिनियां हैं। हर श्रेणी में 64 योगिनी। इनके साथ 52 भैरव भी होते हैं। सैकड़ों योगिनी, अप्सरा, यक्षिणी के नाम मैं बता सकता हूं। 49 प्रकार के मरुद्गण और 56 प्रकार के विश्वेदेव होते हैं। ये सब कहां गए? इनकी गणना क्यों न की गई?
33 कोटि बताने वालों का दूसरा खंडन :
शिव-सती : सती ही पार्वती है और वही दुर्गा है। उसी के 9 रूप हैं। वही 10 महाविद्या है। शिव ही रुद्र हैं और हनुमानजी जैसे उनके कई अंशावतार भी हैं।
विष्णु-लक्ष्मी : विष्णु के 24 अवतार हैं, वही राम हैं और वही कृष्ण भी। बुद्ध भी वही है और नर-नारायण भी वही है। विष्णु जिस शेषनाग पर सोते हैं वही नागदेवता भिन्न-भिन्न रूपों में अवतार लेते हैं। लक्ष्मण और बलराम उन्हीं के अवतार हैं।
ब्रह्मा-सरस्वती : ब्रह्मा को प्रजापति कहा जाता है। उनके मानस पुत्रों के पुत्रों में कश्यप ऋषि हुए जिनकी कई पत्नियां थीं। उन्हीं से इस धरती पर पशु-पक्षी और नर-वानर आदि प्रजातियों का जन्म हुआ। चूंकि वे हमारे जन्मदाता हैं इसलिए ब्रह्मा को प्रजापिता भी कहा जाता है।
इनके तर्क का पुन: खंडन :
यदि कश्यप आदि को आप इसीलिए देव नहीं मानते, क्योंकि ब्रह्मा के द्वारा इनका प्राकट्य हुआ है, सो ये सब ब्रह्मरूप हुए सो इनकी गिनती नहीं होगी तो कश्यप के द्वारा प्रकट किए गए 12 आदित्य और 8 वसु तथा 11 रुद्रों को आप कश्यप रूप मानकर छोड़ क्यों नहीं देते? इनकी गिनती के समय आपकी प्रज्ञा कहां गई?
यदि सारे रूद्र शिव के अवतार हैं, स्वयं हनुमानजी भी हैं, तो क्या आप पार्वती को हनुमानजी की पत्नी कह सकते हैं? क्यों नहीं? इसीलिए क्योंकि हनुमान रुद्रावतार हैं उस समय अवतार यानी वही ऊर्जा होने पर भी स्वरूपत: और उद्देश्यत: भिन्न हैं। ऐसे ही समग्र संसार नारायण रूप होने पर भी स्वरूपत: और उद्देश्यत: भिन्न हैं। इसी कारण आप सीता को कृष्ण पत्नी और रुक्मिणी को राम पत्नी नहीं कह सकते, क्योंकि अभेद में भी भेद है। और जो सभी के एक होने की बात करते हैं वे यदि इतने ही बड़े ब्रह्मज्ञानी हैं तो क्या उन्हें शिव और विष्णु की एकाकारता नहीं दिखती?
शिव और विष्णु में इन्हें भेद दिखता है इसलिए इन्हें अलग-अलग गिनेंगे और राम और विष्णु में अभेद दिखता है, सो इन्हें नहीं गिनेंगे। समग्र संसार ही विष्णुरूप है, रुद्ररूप है, देवीरूप है। भेद भी है और अभेद भी है। लेकिन यदि अभेद मानते हो फिर ये जो 33 देव गिना रहे हो ये भी न गिना पाओगे, क्योंकि जब विष्णु के अवतार राम और कृष्ण को अभेद मानकर नहीं गिन रहे, सती के 10 महाविद्या अवतार को नहीं गिन रहे तो फिर शिवजी के 11 रुद्र अवतार को किस सिद्धांत से गिन रहे हो? सभी ग्रामदेव, कुलदेव, अजर आदि क्षेत्रपाल, ये सबको कौन गिनेगा? ये छोड़ो, इस 33 वाली गणना में तो गणेश, कार्तिकेय, वीरभद्र, अग्नि, वायु, कुबेर, यमराज जैसे प्रमुख देवों को भी नहीं गिना गया।
वेदों में कही-कहीं 13 देवता की भी बात आई है और कहीं-कहीं 36 देवता की भी चर्चा है। 3,339 और 6,000 की भी चर्चा है। अकेले वालखिल्यों की संख्या 60,000 है। तो वहां इन 33 में से कुछ को लिया भी गया है और कुछ को नहीं भी। तो क्या वह असत्य है? बिलकुल नहीं। जैसे जहां मनुष्य की चर्चा हो वहां आप केवल उनका ही नाम लेते हैं जिसका उस चर्चा से संबंध हो, सभी का नहीं। वैसे ही जहां जैसे प्रसंग हैं वहां वैसे ही देवों का नाम लिया गया है। इसका अर्थ ये नहीं कि जिनकी चर्चा नहीं की गई, या अन्यत्र की गई, उसका अस्तित्व ही नहीं। इस 33 की श्रेणी में गरूड़, नंदी आदि का नाम नहीं जबकि वेदों में तो है। विनायक की श्रेणी में, वक्रतुण्ड की श्रेणी में गणेशजी के सैकड़ों अवतार के नाम तंत्र में आए हैं।
हां, 33 कोटि देव की बात है जरूर और कोटि का अर्थ करोड़ ही है, क्योंकि देवता केवल स्वर्ग में नहीं रहते। उनके सैकड़ों अन्य दिव्यलोक भी हैं। और ऐसा कहा जाए तो फिर सभी एकरूप होने से सीधे ब्रह्म के ही अंश हैं तो ये 33 भी गिनती में नहीं आएंगे। फिर वैसे तो हम सब भी गिनती में नहीं आएंगे। सभी भारतीय ही हैं तो अलग-अलग क्यों गिनते हैं?