अर्थात्- सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखंड अर्थात इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई।
प्रारंभिक मानव गुफा में रहता था? उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे प्राचीन पहाड़ी अरावली और सतपुड़ा की पहाड़ियों को माना है। यूनान के लोगों की धारणा थी कि उनके देवता गुफाओं में ही रहते थे। इसी प्रकार रोम के लोगों का मानना था कि गुफाओं में परियां तथा जादू-टोना करने वाले लोग रहते हैं। फारस के लोग मानते थे कि गुफाओं में देवताओं का वास होता है। आज का विज्ञान कहता है कि गुफाओं में एलियंस रहते थे। गुफाओं का इतिहास सदियों पुराना है। पाषाण युग में मानव गुफाओं में रहता था।
आमतौर पर पहाड़ों को खोदकर बनाई गई जगह को गुफा कहते हैं, लेकिन गुफाएं केवल पहाड़ों पर ही निर्मित नहीं होती हैं यह जमीन के भीतर भी बनाई जातीं और प्राकृतिक रूप से भी बनती हैं। प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे बहने वाली पानी की धारा से बनती हैं। ज्वालामुखी की वजह से भी गुफाओं का निर्माण होता है। दुनिया में अनेक छोटी-बड़ी गुफाएं हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
अफगानिस्तान के बामियान से भीमबैठका तक और अमरनाथ से महाबलीपुरम तक भारत में हजारों गुफाएं हैं। हिमालय में तो अनगिनत प्राकृतिक गुफाएं हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां साधु-संत ध्यान और तपस्या करते हैं। आओ जानते हैं भारत की 15 रहस्यमयी गुफाओं के बारे में, जो अब रखरखाव के अभाव में अपने अस्तित्व संकट से जूझ रही हैं। भारत सरकार को चाहिए कि वह इस पर ध्यान दें।
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भीमबैठका : भीम यहां बैठते थे, विश्राम करते थे इसलिए इन गुफाओं को भीमबैठका कहा जाता है। भीमबैठका रातापानी अभयारण्य में स्थित है। यह भोपाल से 40 किलोमीटर दक्षिण में है। यहां से आगे सतपुडा की पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं। भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदिमानव द्वारा बनाए गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है।
नर्मदा घाटी को विश्व की सबसे प्राचीन घाटियों में गिना जाता है। यहां भीमबैठका, भेड़ाघाट, नेमावर, हरदा, ओंकारेश्वर, महेश्वर, होशंगाबाद, बावनगजा, अंगारेश्वर, शूलपाणी आदि नर्मदा तट के प्राचीन स्थान हैं। नर्मदा घाटी में डायनासोर के अंडे भी पाए गए हैं और यहां कई विशालकाय प्रजातियों के कंकाल भी मिले हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में तो कई गुफाएं हैं। एक गुफा में 10 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं।
यहां मिले शैलचित्रों में स्पष्ट रूप से एक उड़नतश्तरी बनी हुई है। साथ ही इस तश्तरी से निकलने वाले एलियंस का चित्र भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आम मानव को एक अजीब छड़ी द्वारा निर्देश दे रहा है। इस एलियंस ने अपने सिर पर हेलमेट जैसा भी कुछ पहन रखा है जिस पर कुछ एंटीना लगे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि 10 हजार वर्ष पूर्व बनाए गए ये चित्र स्पष्ट करते हैं कि यहां एलियन आए थे, जो तकनीकी मामले में हमसे कम से कम 10 हजार वर्ष आगे हैं ही।
भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। ये भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। इनकी खोज वर्ष 1957-1958 में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।
यहां 750 शैलाश्रय हैं जिनमें 500 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। पूर्व पाषाणकाल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।
इन चित्रों में शिकार, नाच-गाना, घोड़े व हाथी की सवारी, लड़ते हुए जानवर, श्रृंगार, मुखौटे और घरेलू जीवन का बड़ा ही शानदार चित्रण किया गया है। इसके अलावा वन में रहने वाले बाघ, शेर से लेकर जंगली सूअर, भैंसा, हाथी, हिरण, घोड़ा, कुत्ता, बंदर, छिपकली व बिच्छू तक चित्रित हैं। चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेंरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।
कहीं-कहीं तो चित्र बहुत सघन हैं जिनसे पता चलता है कि ये अलग-अलग समय में अलग-अलग लोगों ने बनाए होंगे। इनके काल की गणना कार्बन डेटिंग सिस्टम से की गई है जिनमें अलग-अलग स्थानों पर पूर्व पाषाणकाल से लेकर मध्यकाल तक की चित्रकारी मिलती है। इसकी कार्बन डेटिंग से पता चला है कि इनमें से कुछ चित्र तो लगभग 25 हजार वर्ष पुराने हैं।
ये चित्र गुफाओं की दीवारों व छतों पर बनाए गए हैं जिससे मौसम का प्रभाव कम से कम हो। अधिकतर चित्र सफेद व लाल रंग से ही बनाए गए हैं लेकिन मध्यकाल के कुछ चित्र हरे व पीले रंगों से भी निर्मित हैं। प्रयुक्त रंगों में कुछ पदार्थों जैसे मैंगनीज, हैमेटाइट, नरम लाल पत्थर व लकड़ी के कोयले का मिश्रण होता था। इसमें जानवरों की चर्बी व पत्तियों का अर्क भी मिला दिया जाता था। आज भी ये रंग वैसे के वैसे ही हैं।
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अजंता-एलोरा की गुफाएं : यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। इसमें अजंता में 29 बौद्ध गुफाएं और कई हिन्दू मंदिर मौजूद हैं। ये गुफाएं अपनी चित्रकारी, गुफाएं और अद्भुत मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये गुफाएं कई हजार वर्ष पुरानी हैं, लेकिन बौद्ध गुफाएं होने के कारण इनको 2 सदी ईसा पूर्व से 7 शताब्दी ईसा तक का माना जाता रहा है, लेकिन अब नए शोध ने यह धारणा बदल दी है।
एलोरा की गुफाएं सबसे प्राचीन मानी जाती हैं। इसमें पत्थर को काटकर बनाई गईं 34 गुफाएं हैं और एक रहस्यमयी प्राचीन हिन्दू मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कोई मानव नहीं बना सकता और इसे आज की आधुनिक तकनीक से भी नहीं बनाया जा सकता। इस विशालकाय अद्भुत मंदिर को सभी देखने आते हैं। इसका नाम कैलाश मंदिर है। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की बात नहीं है।
माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एक सीक्रेट शहर है। आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।
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एलीफेंटा की गुफा : मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित एक स्थल है, जो एलीफेंटा नाम से विश्वविख्यात है। यहां पहाड़ को काटकर बनाई गई इन सुंदर और रहस्यमय गुफाओं को किसने बनाया होगा? माना जाता है कि इसे 7वीं व 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजाओं द्वारा खोजा गया था। 'खोजा गया था' का मतलब यह कि यह उन्होंने बनाया नहीं था। कई हजार वर्षों पुरानी इन गुफाओं की संख्या 7 हैं जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है महेश मूर्ति गुफा। एलीफेंटा को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है, जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी।
इसका ऐतिहासिक नाम घारापुरी है। यह नाम मूल नाम अग्रहारपुरी से निकला हुआ है। एलीफेंटा नाम पुर्तगालियों ने दिया है। यहां हिन्दू धर्म के अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। यहां भगवान शंकर की 9 बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं, जो शंकरजी के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दिखाती हैं। इनमें शिव की त्रिमूर्ति प्रतिमा सबसे आकर्षक है। यह पाषाण-शिल्पित मंदिर समूह लगभग 6,000 वर्गफीट के क्षेत्र में फैला है।
गुफा के मुख्य हिस्से में पोर्टिको के अलावा 3 ओर से खुले सिरे हैं और इसके पिछली ओर 27 मीटर का चौकोर स्थान है और इसे 6 खंभों की कतार से सहारा दिया जाता है। 'द्वारपाल' की विशाल मूर्तियां अत्यंत प्रभावशाली हैं। इस गुफा में शिल्पकला के कक्षों में अर्धनारीश्वर, कल्याण सुंदर शिव, रावण द्वारा कैलाश पर्वत को ले जाने, अंधकारी मूर्ति और नटराज शिव की उल्लेखनीय छवियां दिखाई गई हैं। इस गुफा संकुल को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत का दर्जा दिया गया है।
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बाघ की गुफाएं : बाघ की गुफाएं प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। मध्यप्रदेश के प्राचीन स्थल धार जिले में स्थित बाघ की गुफाओं को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। धार, इंदौर शहर से 60 किलोमीटर की दूरी पर ही है। बाघिनी नामक छोटी-सी नदी के बाएं तट पर और विंध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित इन गुफाओं का इतिहास भी रहस्यों से भरा है।
बाघ-कुक्षी मार्ग से थोड़ा हटकर बाघ की गुफाएं बाघ ग्राम से 5 मील दूर हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजंता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है।
इसमें कुल 9 गुफाएं हैं जिनमें से 1, 7, 8 और 9वीं गुफा नष्टप्राय है तथा गुफा संख्या 2 'पाण्डव गुफा' के नाम से प्रचलित है जबकि तीसरी गुफा 'हाथीखाना' और चौथी 'रंगमहल' के नाम से जानी जाती है। इन गुफा का निर्माण संभवतः 5वी-6वीं शताब्दी ई. में हुआ होगा।
माना जाता है कि इन गुफाओं का निर्माण भगवान बुद्ध की प्रतिदिन होने वाली दिव्यवार्ता को प्रतिपादित करने हेतु निर्मित और चित्रित किया गया था। बाघ की गुफा संख्या 1 से 9 तक में कक्ष, स्तंभ, लंबे बरामदे, कोठरियां, शैलकृत स्तूप, बुद्ध प्रतिमा, बोधिसत्व, अवलोकितेंर मैत्रेय, नदी, देवियों आदि का अंकन है। बाघ की गुफा संख्या 2, 3, 4, 5, एवं 7 में भित्तिचित्र हैं, गुफा में 6 दृश्यों का अंकन है। बाघ गुफाओं के चित्रों की शैली अजंता के समान है तथा ये अजंता के समकालीन हैं।
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महाकाली और कन्हेरी की गुफाएं : मुंबई में कई गुफाएं हैं। उनमें से एलीफेंटा, महाकाली और कन्हेरी की गुफाएं प्रसिद्ध हैं। महाकाली की गुफा मुंबई के अंधेरी वेस्ट में बौद्धमठ के पास है, जबकि कन्हेरी की गुफा मुंबई के पश्चिम में बसे बोरीवली क्षेत्र में स्थित है।
महाकाली की गुफाएं 19 गुफाओं को मिलाकर बनाई गई हैं। माना जाता है कि लगभग 1 शताब्दी से 6वीं के शताब्दी के मध्य इसका निर्माण हुआ था। महाकाली गुफा के बीच में एक शिव मंदिर है। यहां का शिवलिंग 8 फिट ऊंचा है। महाकाली गुफा में 9वीं गुफा सबसे बड़ी है, इस गुफा में बुद्ध की पौराणिक कथा और उनके 7 चित्र बने हुए हैं।
कन्हेरी की गुफा की लंबाई 86 फुट, चौड़ाई 40 फुट और ऊंचाई 50 फुट है। इसमें 34 स्तंभ लगाए गए हैं। कन्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरीमंदिरों में की जाती है।
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बोरा गुफाएं : दक्षिणी राज्य आंध्रप्रदेश में ऐसी कई गुफाएं हैं। इनमें बेलम व बोरा गुफाएं प्रमुख हैं। बोरा गुफाएं विशाखापट्टनम से 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं। 10 लाख साल पुरानी ये गुफाएं समुद्र तल से 1400 फुट ऊंचाई पर स्थित हैं। भू-वैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं।
गुफाएं अंदर से काफी विराट हैं। उनके भीतर घूमना एक अद्भुत अनुभव है। अंदर घुसकर वह एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानो किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खड़े होते हैं।
देश की प्रमुख गुफाओं में से एक है बोरा की गुफाएं। बोरा गुफाएं छत्तीसगढ़ में कोटमसर गुफाओं जैसी गर्म और दमघोंटू नहीं हैं। इसकी वजह इनकी भीतर से विशालता भी है। विशाखापट्टनम में रुककर भी दिन में गुफाएं देखी जा सकती हैं।
बेलम गुफाएं : आंध्र में ही कुरनूल से 106 किलोमीटर दूर बेलम गुफाएं स्थित हैं। मेघालय की गुफाओं के बाद ये भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफाएं हैं। इन्हें मूल रूप से तो 1854 में एचबी फुटे ने खोजा था लेकिन दुनिया के सामने 1982 में यूरोपीय गुफा विज्ञानियों की एक टीम ने इन्हें मौजूदा स्वरूप में पेश किया।
पहाड़ियों में स्थित बोरा गुफाओं के विपरीत बेलम गुफाएं एक बड़े से सपाट खेत के नीचे स्थित हैं। जमीन से गुफाओं तक 3 कुएं जैसे छेद हैं। इन्हीं में से बीच का छेद गुफा के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल होता है। लगभग 20 मीटर तक सीधे नीचे उतरने के बाद गुफा जमीन के नीचे फैल जाती हैं। इनकी लंबाई 3,229 मीटर है।
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कुटुमसर की गुफाएं : कुटुमसर की गुफाओं में रहते थे आदि मानव। एक अध्ययन से पता चला है कि करोड़ों वर्ष पूर्व प्रागैतिहासिक काल में बस्तर की कुटुमसर की गुफाओं में मनुष्य रहा करते थे। फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी अहमदाबाद, इंस्टीट्यूट ऑफ पेलको बॉटनी लखनऊ तथा भूगर्भ अध्ययन शाला लखनऊ ने यह जानकारी दी है।
विश्वप्रसिद्ध बस्तर की कुटुमसर की गुफाएं कई रहस्यों को अभी भी अपने में समेटे हुए है जिनका भूगर्भ शास्त्रियों द्वारा लगातार अध्ययन किया जा रहा है। भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि करोड़ों वर्ष पूर्व क्षेत्र में कुटुमसर की गुफाऐं स्थित हैं वह क्षेत्र पूरा पानी में डूबा हुआ था। गुफाओं का निर्माण प्राकृतिक परिवर्तनों साथ साथ पानी के बहाव के कारण हुआ।
कुटुमसर की गुफाएं जमीन से 55 फुट नीचे हैं। इनकी लंबाई 330 मीटर है। इस गुफा के भीतर कई पूर्ण विकसित कक्ष हैं जो 20 से 70 मीटर तक चौड़े हैं। फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद के शोधकर्त्ताओं ने इन्हीं कक्षों के अध्ययन के बाद निष्कर्ष पर पहुंचे है कि करोड़ों वर्ष पूर्व यहां के आस पास के लोग इन गुफाओं में रहा करते थे। संभवत: यह प्रागैतिहासिक काल था।
चूना पत्थर से बनी कुटुमसर की गुफाओं के आंतरिक और बाह्य रचना के अध्ययन के उपरांत भूगर्भशास्त्री कई निष्कर्षों पर पहुंचे हैं। उदाहरण के लिए चूना पत्थर के रिसाव, कार्बनडाईक्साइड तथा पानी की रासायनिक क्रिया से सतह से लेकर छत तक अद्भूत प्राकृतिक संरचनाएँ गुफा के अंदर बन चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि रक्षामंत्रालय की एक उच्चस्तरीय समिति ने विश्वप्रसिद्ध इस गुफा की झाँकियों को 26 जनवरी के अवसर पर राजपथ पर प्रस्तुत करने की अनुमति भी प्रदान की।
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उंदावली, विजयवाड़ा की गुफा : विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश के पूर्व-मध्य में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। दो हज़ार वर्ष पुराना यह शहर बैजवाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। यह नाम देवी कनकदुर्गा के नाम पर है, जिन्हें स्थानीय लोग विजया कहते हैं। यहाँ की गुफाओं में उंद्रावल्ली की प्रमुख गुफा है, जो सातवीं सदी में बनाई गई थी। शयन करते विष्णु की एक शिला से निर्मित मूर्ति यहाँ की कला का श्रेष्ठ नमूना है। विजयवाड़ा के दक्षिण में 12 किलोमीटर दूर मंगलगिरि की पहाड़ी पर विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह का विख्यात मंदिर है।
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जम्मू कश्मीर की गुफाएं : कश्मीर में तो अमरनाथ और वैष्णोदेवी की गुफा में हिन्दुजन दर्शन के लिए जाते ही हैं लेकिन कश्मीर में ऐसी चार गुफाएं हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उनका दूसरा सिरा 4000 हजार किलोमीटर दूर रूस तक जाता है। इतना ही नहीं, इन गुफाओं के बारे में और भी ऐसे रहस्य हैं, जिनकी सच्चाई सदियों बाद भी सामने नहीं आईं।
पीर पंजाल की गुफा : जम्मू-कश्मीर के पीर पंजाल में एक गुफा है जहां एक शिवलिंग रखा है। इसका नाम पीर पंजाल केव रखा गया है।
शिव खाड़ी : जम्मू में ही शिव खाड़ी नामक एक गुफा है।
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डुंगेश्वरी गुफा, बिहार : सुजात नामक स्थान पर डुंगेश्वरी गुहा मंदिर को महाकाल गुफाओं के नाम से भी जाना जाता है जो बोधगया (बिहार) के उत्तर-पूर्व में 12 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां तीन पवित्र बुद्ध गुफाएं हैं। इन गुफाओं में भगवान बुद्ध ने ध्यान लगाया था। भगवान बुद्ध ने बोधगया आने के पूर्व छह वर्षों तक कठोर निग्रह के साथ इन गुफाओं में तपस्या की थी। यह माना जाता है कि भगवान बुद्ध को यहीं से मध्यम मार्ग का ज्ञान प्राप्त हुआ था। दो छोटे मंदिर इस घटना की याद मे यहां बनाए गए हैं।
मूलत: यह हिन्दू धर्म से जुड़ी गुफाएं हैं जो हिंदू देवी डुंगेश्वरी नाम से विख्यात है।
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अर्जन गुफा : कुल्लू से 5 किलोमीटर की दूरी पर जगतसुख स्थान है। जगतसुख कुल्लू के राजा जगत सिंह की राजधानी थी। इस स्थान पर बिम्बकेश्वर और गायत्री देवी के मंदिर विशेष आकर्षक हैं। इसके नजदीक हमटा नाम स्थान है। यहां प्रसिद्ध अर्जुन गुफा है।
इस गुफा में अर्जुन की विशाल प्रतिमा है। यहां से 2 किलामीटर दूर त्रिवेणी नामक स्थान है,जहां व्यास गंगा, धोमाया गंगा और सोमाया गंगा का संगम है। इससे 1 किलोमीटर की दूरी पर गर्म पानी का चश्मा कलात कुंड है और कपिल मुनि का आश्रम भी यहां है। यहीं पर टोबा नामक प्रसिद्ध गुफा मठ भी है।
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पीतलखोरा की गुफा : पीतलखोरा की गुफा महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। यहां पत्थर की चट्टानों को काटकर कुल 13 गुफाएं बनाई गई है। गुफा संख्या 3 चैत्य गृह और गुफा संख्या 4 विहार हैं। यहां स्थित 37 अठपहलू स्तंभों में से 12 बचे हैं, तथा शेष ये स्तूप विनष्ट हो गए हैं। इसका निर्माण सम्भवतः द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में होने का अनुमान है।
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वाणावर (बराबर) : प्राचीन मगध साम्राज्य के गौरवमयी विरासत प्रतीक स्वरूप है वाणावर जिला। वाणावर पहाड़ी समूह में प्रमुख रूप से वाणावर एवं नागार्जुनी पहाड़ियां सम्मिलित है। वैसे तो इस पहाड़ी समूह में मूर्त्ति शिल्प, भित्ति चित्र एवं ललित कला के नायाब नमूने मिलते हैं, पर उस पहाड़ी समूह का सर्वप्रमुख आकर्षण यहां की गुफाएं है। माना जाता है कि ग्रेनाइट की शैलों में आज से लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पहले ये गुफाएं बनाई गई थी।
इन गुफाओं को भारतीय वास्तुकला की उन गरिमामयी परम्परा में स्थान प्राप्त है, जिसमें उदयगिरि, खंडगिरि, अजंता एवं एलोरा की गुफाओं को रखा गया है। इन गुफाओं में उत्कीर्ण अभिलेखों से पता चलता है कि मौर्य शासक अशोक महान एवं उनके पोते दशरथ ने इन गुफाओं को अजीवक संप्रदाय के संतों को दान में दिया था।
वाणावर पहाड़ी के उतुंग शिखर पर स्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ का मंदिर भी ऐतिहासिक है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत कालीन वाणासुर ने इसकी स्थापना की थी । वापी गुफा में अंकित एक अभिलेख से इस मंदिर के 7वीं-8वीं शताब्दी के होने का उल्लेख मिलता है।
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उदयगिरि की गुफाएं : उदयगिरि मध्यप्रदेश के विदिशा से वैसनगर होते हुए पहुंचा जा सकता है। नदी से यह पहाड़ी लगभग 1 मील की दूरी पर है। यह प्राचीन स्थल भिलसा से चार मील दूर बेतवा तथा बेश नदियों के बीच स्थित है।
पहाड़ी के पूरब की तरफ पत्थरों को काटकर अद्भुत गुफाएं बनाई गई हैं। उदयगिरि को पहले नीचैगिरि के नाम से जाना जाता था। कालिदास ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है। 10 वीं शताब्दी में जब विदिशा धार के परमारों के हाथ में आ गया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस स्थान का नाम उदयगिरि रख दिया।
उदयगिरि में कुल 20 गुफाएं हैं। इनमें से कुछ गुफाएं 4वीं-5वीं सदी से संबद्ध है। गुफा संख्या 1 तथा 20 को जैन गुफा माना जाता है। बाकी शिव गुफा, वराह गुफा, वैष्णव गुफा आदि गुफाओं के नाम से विख्यात है। इन गुफाओं का संवरक्षण करना जरूरी है।
अगले पन्ने पर 15वीं गुफा का रहस्य जानिए...
उदयगिरि और खंडगिरि गुफाएं : उदयगिरि और खंडगिरि ओडीशा में भुवनेश्वर के पास स्थित दो पहाड़ियां हैं। इन पहाड़ियों में आंशिक रूप से प्राकृतिक व आंशिक रूप से कृत्रिम गुफाएं हैं जो पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व की हैं। भुवनेश्वर से 8 किमी दूर स्थित इन दो पहाड़ियों का वातावरण काफी निर्मल है। उदयगिरि और खंडगिरि में कभी प्रसिद्ध जैन मठ हुआ करते थे। इन मठों को पहाड़ी की चोटी पर चट्टानों को काट कर बनाया गया था।
इन्हीं मठों को आज गुफा के रूप में देख सकते हैं। ये मठ काफी प्रचीन थे और इसका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में किया गया था। इन में से कुछ गुफाओं में नक्काशी भी की गई है। यहां एक दो तल्ला गुफा भी है जिसे रानी गुंफा के नाम से जाना जाता है। इस गुफा को ढेरों नक्काशियों से सजाया गया है। यहां एक और बड़ी गुफा है, जिसे हाथी गुंफा के नाम से जाना जाता है। उदयगिरि में जहां 18 गुफाएं हैं, वहीं खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं।
खंडगिरि : पहली और दूसरी गुफाएं तातोवा गुम्फा 1 और 2 कहलाती हैं, जो प्रवेश स्थल पर रक्षकों और दो बैलों तथा सिंहों से सुसज्जित है। प्रवेश तोरण पर तोते की आकृतियां हैं। गुफा संख्या 3 अनंत गुफा कहलाती है, जहां स्त्रियों, हाथियों, खिलाड़ियों और पुष्प उठाए हंसों की मूर्तियां हैं। गुफा संख्या 4 तेन्तुली गुम्फा है। गुफा संख्या 5 खंडगिरि गुम्फा दो मंजिली है, जो सामान्य तरीके से काटी गई हैं। गुफा संख्या 12, 13 और 14 के कोई नाम नहीं है। गुफा संख्या 6 से गुफा संख्या 11 के नाम हैं- ध्यान गुम्फा, नयामुनि गुम्फा, बाराभुजा गुम्फा, त्रिशूल गुम्फा, अम्बिका गुम्फा और ललतेंदुकेसरी गुम्फा। गुफा सख्या 11 की पिछली दीवार पर जैन तीर्थंकरों, महावीर और पार्श्वनाथ की नक्काशी वाली उभरी हुई मूर्तियां हैं। गुफा संख्या 14 एक साधारण कक्ष है, जिसे एकादशी गुम्फा के नाम से जाना जाता है।
उदयगिरी की गुफा : ओडीशा की राजधानी भुवनेश्वर की उदयगिरी पहाड़ियों में स्थित यह गुफा भी विश्व प्रसिद्ध है। इस गुफा के साथ ही यहां पर कई रहस्यमयी और अद्भुत गुफाएं भी हैं। इन्हीं में से एक है टाइगर केव। दरअसल इस गुफा का प्रवेश द्वार शेर के मुख की तरह बना हुआ है, इसी वजह से इसे टाइगर केव या शेर गुफा कहा जाता है। उदयगिरी की पहाड़ियों को सूर्योदय पर्वत भी माना जाता है और यहां से सूर्योदय का नजारा बेहद खास होता है।
बादामी गुफा : गुफा के अन्दर कई मंदिर होने से आकर्षक और भव्य दिखती है यह गुफा। कर्नाटक में स्थित बादामी गुफा के अन्दर कई मंदिर हैं। इतिहासकारों के अनुसार बादामी गुफा पांचवीं सदी की है।