दक्षिण भारत में असुरराज विरोचन के पुत्र राजा बलि की तो उत्तर भारत में कश्यप पुत्र भगवान वामन की पूजा का महत्व है। विष्णु के पांचवें अवतार वामन की पूजा भाद्रपद की शुक्ल द्वादशी को होती है जबकि बलि की पूजा भाद्रपद में त्रयोदशी को होती है। इस दिन को दक्षिण भारत में ओणम पर्व मनाया जाता है।
1.एक कथा के अनुसार ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र भगवान वामन थे जबकि ऋषि कश्यप और दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद और प्रहलाद के पुत्र विरोचन और विरोचन के पुत्र असुरराज बलि थे।
2.राजा बलि का राज्य संपूर्ण दक्षिण भारत में था। दक्षिण भारत में वे अपनी जनता के बीच लोकप्रिय थे और दानवीर के रूप में उनकी दूर-दूर तक प्रसिद्धि थी। उन्होंने महाबलीपुरम को अपनी राजधानी बनाया था। दूसरी ओर भगवान वामन हिमालय में रहते थे। उस वक्त अमरावती इंद्र की राजधानी थी।
3.जब राजा बलि ने त्रिलोक्य पर अधिकार कर लिया तो देवताओं के अनुरोध पर वामन भगवान ने ब्राह्मण वेश में राजा बलि से उस वक्त तीन पग धरती मांग ली जब वे नर्मदा तट पर अपना एक यज्ञ संपन्न कर रहे थे। वहां शुक्राचार्य ने उन्हें सतर्क किया लेकिन बलि ने दान का संकल्प ले लिया। बाद में वामन ने अपना विराट रूप दिखाकर संपूर्ण त्रिलोक्य पर अपना अधिकार जमा लिया और बलि को बाद में पाताल लोक के सुतल लोक का राजा बनाकर अजर-अमर कर दिया।
4.दक्षिण भारत में खासकर केरल के लोग मानते हैं कि हमारे राजा बलि अजर-अमर हैं और वे ओणम के दिन अपनी प्रजा को देखने वर्ष में एक बार जरूर आते हैं। वह दिन ही ओणम होता है। वहां के कुछ लोगों में यह भी मान्यता है कि वामन भगवान ने उनके साथ छल गया था। ओणम का त्योहार दीपावली की तरह मनाया जाता है, जबकि वामन अवतार तिथि के समय उत्तर भारत में इतनी कोई धूम नहीं होती।
5.उत्तर भारत में कुछ लोग मानते हैं कि राजा बलि एक असुर था और खुद को ईश्वर मानता था। मान्यता अनुसार वर्तमान में वह मरुभूमि में रहता है। प्राचीन काल में मरुभूमि के पास की भूमि को पाताल लोक कहा जाता था। अधिकतर मान्यताओं के अनुसार अरब की खाड़ी में पाताल लोक स्थित है। वहीं पर अहिरावण का भी राज्य था। समुद्र मंथन में बलि को घोड़ा प्राप्त हुआ था जबकि इंद्र को हाथी। उल्लेखनीय है कि अरब में घोड़ों की तादाद ज्यादा थी और भारत में हाथियों की।