वानर राज बालि किष्किंधा का राजा और सुग्रीव का बड़ा भाई था। बालि का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ संपन्न हुआ था। तारा एक अप्सरा थी। बालि को तारा किस्मत से ही मिली थी। बालि के आगे रावण की एक नहीं चली थी, तब रावण ने क्या किया था यह अगले पन्ने पर पढ़ें।
बालि के पिता का नाम वानरश्रेष्ठ 'ऋक्ष' था। बालि के धर्मपिता देवराज इन्द्र थे। बालि का एक पुत्र था जिसका नाम अंगद था। बालि गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। उसमें उड़ने की शक्ति भी थी। धरती पर उसे सबसे शक्तिशाली माना जाता था, लेकिन उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना नहीं थी। वह भगवान सूर्य का उपासक और धर्मपरायण था। हालांकि उसमें दूसरे कई दुर्गुण थे जिसके चलते उसको दुख झेलना पड़ा।
अगले पन्ने पर बालि की शक्ति का राज...
रामायण के अनुसार बालि को उसके धर्मपिता इन्द्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इस हार की शक्ति अजीब थी। इस हार को ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इसको पहनकर बालि जब भी रणभूमि में अपने दुश्मन का सामना करेगा तो उसके दुश्मन की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बालि को प्राप्त हो जाएगी। इस कारण से बालि लगभग अजेय था।
बालि का दुंदुभि से युद्ध क्यों हुआ...अगले पन्ने पर...
कहा जाता है कि माया नामक असुर स्त्री के दो पुत्र थे- मायावी तथा दुंदुभि। दुंदुभि महिषरूपी असुर था। दुंदुभि को अपनी शक्ति पर दंभ हो गया था। वह पहाड़ के समान दिखाई देता था। उसने सबसे पहले सागर राज को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन सागर राज ने कहा कि ऐसे वीर से वह युद्ध करने में असमर्थ है। आपको तो गिरियों के राजा हिमवान को ललकारना चाहिए। हालांकि सागर राजा दुंदुभि के दंभ को तोड़ सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सागर राज की तरह ही हिमवान ने कहा कि तुम्हारे जैसे वीर को इंद्र के पुत्र बालि से युद्ध करना चाहिए, तब दुंदुभि ने किष्किंधा के द्वार पर जाकर बालि को ललकारा।
बालि ने पहले तो दंभी दुंदुभि को समझाने की कोशिश की, परंतु जब वह नहीं माना तो बालि ने दुंदुभि को बड़ी सरलता से हराकर उसका वध कर दिया। इसके पश्चात बालि ने दुंदुभि के निर्जीव शरीर को उछालकर एक ही झटके में एक योजन दूर फेंक दिया। शरीर से टपकती रक्त की बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम में गिरीं, जो कि ऋष्यमूक पर्वत में स्थित था। क्रोधित मतंग ने बालि को शाप दे डाला कि यदि बालि कभी भी उनके आश्रम के एक योजन के दायरे में आया तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा। इसी कारण बालि कभी भी ऋष्यमूक पर्वत पर कभी भी नहीं जाता था और सुग्रीव ने बालि से बचने के लिए यहीं पर शरण ली थी।
बालि का मायावी के साथ घोर युद्ध और एक वर्ष बाद...
मायावी का वध : स्त्री के कारण ही बालि का दुंदुभि के भाई मायावी से बैर हो गया। एक बार अर्धरात्रि में किष्किंधा के द्वार पर आकर दुंदुभि के भाई मायावी ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा। बालि तथा सुग्रीव उससे लड़ने के लिए गए। दोनों को आता देखकर मायावी वन की ओर भागा तथा एक गुफा में छिप गया। बालि सुग्रीव को गुफा के पास खड़ा करके स्वयं गुफा में घुस गया।
सुग्रीव ने 1 वर्ष तक बालि के बाहर आने की प्रतीक्षा की। 1 वर्ष बाद गुफा से रक्त की धारा बहती देखकर सुग्रीव ने यह समझा कि बालि मारा गया। तब उसने गुफा को एक पर्वत के शिखर से ढंका और चला गया। बाद में सुग्रीव ने मंत्रियों के आग्रह पर राज्य को संभाल लिया।
उधर बालि ने गुफा के अंदर मायावी को 1 वर्ष में ढूंढ निकाला। उसने मायावी का वध किया और जब वह बाहर लौटकर आया तो गुफा पर रखे पर्वत शिखर को देखकर उसने सुग्रीव को आवाज दी, किंतु उसे कोई उत्तर नहीं मिला। बालि जैसे-तैसे शिखर को हटाकर अपनी नगरी में पहुंचा। जब वहां उसने अपने भाई सुग्रीव को राज्य करते देखा, तब उसे शंका हुई कि सुग्रीव ने राज्य के लोभ के कारण ही यह सब प्रपंच रचा होगा।
उसने सुग्रीव पर प्राणघातक प्रहार किया। प्राणरक्षा के लिए सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर छिप गया। बालि ने सुग्रीव का धन-स्त्री आदि सब कुछ छीन लिया। धन-स्त्री का हरण होने पर सुग्रीव दु:खी होकर अपने हनुमान आदि 4 मंत्रियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगा।
रावण मारना चाहता था बालि को, लेकिन...
रामायण में ऐसा प्रसंग आता है कि एक बार जब बालि संध्यावंदन के लिए जा रहा था तो आकाश मार्ग से नारद मुनि जा रहे थे। बालि ने उनसे अभिवादनपूर्वक पूछा कि कहां जा रहे हो? तो नारद ने बताया कि वे लंका जा रहे हैं, जहां लंकापति रावण ने देवराज इन्द्र को परास्त करने के उपलक्ष्य में राज भोज का आयोजन किया है।
कुछ देर रुकने के बाद नारद ने चुटकी लेते हुए कहा कि अब तो पूरे ब्रह्माण्ड में केवल रावण का ही आधिपत्य है और सारे प्राणी, यहां तक कि देवतागण भी उसे ही शीश नवाते हैं। नारद से ऐसी बातें सुनकर बालि ने कहा, 'हे मुनिवर! रावण ने अपने वरदान और अपनी सेना का इस्तेमाल उन लोगों को दबाने में किया है जो निर्बल हैं, लेकिन मैं आपको बता दूं कि मैं उनमें से नहीं हूं और रावण के भोज में जा रहे हैं तो यह बात रावण को स्पष्ट कर दें।'
नारदजी ने बालि की यही बात रावण को जाकर बढ़ा-चढ़ाकर बताई जिसे सुनकर रावण क्रोधित हो गया। उसने अपनी सेना तैयार करने के आदेश दे डाले। नारद ने रावण से भी चुटकी लेते हुए कहा कि एक वानर के लिए यदि आप पूरी सेना लेकर जाएंगे तो आपके सम्मान के लिए यह उचित नहीं होगा। ऐसे में रावण ने बालि से अकेले ही लड़ने की ठानी। वह अपने पुष्पक विमान में बैठकर बालि के पास जा पहुंचा।
अगले पन्ने पर रावण की कैसे हुई दुर्गति, जानिए...
अत्यधिक ताकतवर होने के बावजूद जब रावण पाताल लोक के राजा बालि के साथ युद्ध करने गया तो राजा बालि के भवन में खेल रहे बच्चों ने ही उसे पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था। बड़ी मुश्किल से उनसे छुटकर जब वह संध्यावंदन कर रहे बालि की ओर बढ़ा तो बालि के मंत्री ने उसको बहुत समझाया कि आप उन्हें संध्यावंदन कर लेने दें अन्यथा आप मुसीबत में पड़ जाएंगे, लेकिन रावण नहीं माना।
रावण संध्या में लीन बालि को पीछे से जाकर उसको पकड़ने की इच्छा से धीरे-धीरे आगे बढ़ा। बालि ने उसे देख लिया था किंतु उसने ऐसा नहीं जताया तथा संध्यावंदन करता रहा। रावण की पदचाप से जब उसने जान लिया कि वह निकट है तो तुरंत उसने रावण को पकड़कर बगल में दबा लिया और आकाश में उड़ने लगा। राजा बालि ने रावण को अपनी बाजू में दबाकर 4 समुद्रों की परिक्रमा की।
बारी-बारी में उसने सब समुद्रों के किनारे संध्या की। राक्षसों ने भी उसका पीछा किया। रावण ने स्थान-स्थान पर नोचा और काटा किंतु बालि ने उसे नहीं छोड़ा। संध्या समाप्त करके किष्किंधा के उपवन में उसने रावण को छोड़ा तथा उसके आने का प्रयोजन पूछा। रावण बहुत थक गया था किंतु उसे उठाने वाला बालि तनिक भी शिथिल नहीं था। रावण समझ गया था कि बालि से लड़ना उसके बस की बात नहीं है तो उससे प्रभावित होकर रावण ने अग्नि कोसाक्षी बनाकर उससे मित्रता कर ली।
बालि की मृत्यु...
ऋष्यमूक राम-लक्ष्मण समेत बालि से युद्ध करने गया। सुग्रीव के ललकारने पर बालि निकल आया तथा उसने सुग्रीव को मार भगाया। सुग्रीव ने बहुत दुखी होकर राम से पूछा कि उसने बालि को मारा क्यों नहीं? राम के यह बताने पर कि दोनों भाई एक-से लग रहे थे, अत: राम को यह भय रहा कि कहीं बाण सुग्रीव को न लग जाए। राम ने सुग्रीव को गजपुष्पी लता पहनकर फिर से युद्ध के लिए प्रेरित किया। बालि ने जब फिर से सुग्रीव की ललकार सुनी और लड़ने के लिए बाहर निकला तब तारा ने बहुत मना किया, पर वह नहीं माना। युद्ध में जब सुग्रीव कुछ दुर्बल पड़ने लगा तो पेड़ों के झुरमुट में छिपे राम ने बालि को अपने बाण से मार डाला।
भगवान श्रीराम ने एक ही बाण से बालि का वध करके सुग्रीव को निर्भय कर दिया। बालि के मरने पर सुग्रीव किष्किंधा का राजा बना और अंगद को युवराज पद मिला। तदनंतर सुग्रीव ने असंख्य वानरों को सीताजी की खोज में भेजा।