पहिए का आविष्कार किसने किया, जानिए

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भारत में हुआ था पहिए का आविष्कार, इसके एक हजार सबूत भारत में मौजूद हैं। जब पहिया खोजा गया होगा तो वह अपने आप में एक क्रांतिपूर्वक आविष्कार था, आज पहिए के बल पर ही दुनिया चल रही है। अगर पहिया न होता तो सब रुका हुआ होता। आज पहिए की रफ्तार इतनी तेज हो गई है कि उसमें मानवता कुचली जा रहा है। लेकिन यह सबसे बड़ा विकास है कि मानव अब चंद घंटों में ही धरती के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंच जाता है। अब सवाल यह उठता है कि किसने किया पहिए का आविष्कार? सचमुच उस आदमी ने सबसे बड़ी क्रांति कर दी थी।

क्या सचमुच भारत में बहती थी सरस्वती नदी?

आधुनिक पा‍श्चात्य इतिहासकार मानते हैं कि लकड़ी के पहिए का आविष्कार ईसा से 3500 वर्ष पूर्व मोसोपोटामिया (इराक) में हुआ था। इस पहिए को लकड़ी के कई तख्तों से जोड़कर बनाया गया था। इसका आविष्‍कार सुमेरियन सभ्यता के काल में हुआ था। दुनियाभर के स्कूलों में यही पढ़ाया जाता है।

यह कहना कि हड़प्पा की उत्पत्ति मेसोपोटामिया की शाखा सुमेरिया की सभ्यता की प्रेरणा से हुई है, सर्वाधिक गलत और अधूरे ज्ञान या पूर्वाग्रह का परिणाम होगा। सुमेरियन सभ्यता आज से 5,500 वर्ष पूर्व अस्तित्व में थी। इसी काल में सिन्धु घाटी की सभ्यता का अस्तित्व भी था, लेकिन इसी काल में महाभारत का युद्ध भी हुआ था।

भारत व विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थान अतिविशिष्ट है। वह इसलिए कि उसे खोजा गया, लेकिन अभी सरस्वती की सभ्यता को खोजा जाना बाकी है। पुरातत्व विभाग द्वारा 1921 में हड़प्पा (जिला मोंटगोमरी, प. पंजाब) और 1922 में मोहनजोदड़ो (जिला लाड़काना, सिंध) जैसे नगरों की खोज से इस विशाल सभ्यता का पता चला, जो सिन्धु घाटी या हड़प्पा सभ्यता के नाम से जानी जाती है। कार्बन डेटिंग विधि से इसे लगभग 5,500 वर्ष पूर्व का माना जाता है जबकि इसका काल 3500 ईपू से 1700 ईपू के बीच कहा जाता है।

सिन्धु घाटी की सभ्यता हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, लोथल, रोपड़, कालीबंगा, सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा, अलीमुराद (सिन्ध प्रांत) आदि स्थानों तक फैली थी।

उल्लेखनीय है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता से भी पुरानी सरस्वती घाटी की सभ्यता है, जो अब लुप्त हो गई है। यदि इस लुप्त नदी के आसपास की खुदाई की जाए तो भारत का इतिहास पलट जाएगा, क्योंकि प्राचीन भारत सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही बसता था।

लेकिन यह सिन्धु घाटी की सभ्यता किन्हीं कारणों से अचानक नष्ट हो गई। यहां तक कि खुदाई में भी ऐसे कई सबूत मिले हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि पहिए का प्रचलन सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के बीच व्यापक पैमाने पर था। सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों से प्राप्त खिलौना हाथगाड़ी भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रमाणस्वरूप रखी है। सिर्फ यह हाथगाड़ी ही प्रमाणित करती है कि पहिए का अस्तित्व भारत में भी मौजूद था।

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प्राचीनकालीन रथ और चक्र : इतिहासकारों के अनुसार सिन्धु घाटी की सभ्यता और सुमेरियन सभ्यता के बीच घनिष्ठ व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंध थे, तो निश्चित ही व्यापार के साथ ही आवि‍ष्कृत वस्तुओं का भी आदान-प्रदान होता ही होगा। लेकिन उक्त दोनों सभ्यताओं के 2000 वर्ष पूर्व राम के काल में भी तो रथ थे, चक्र थे, धनुष-बाण थे, पुष्पक विमान थे, घट्टी थी और कई तरह के आग्नेयास्त्र थे, तो रामायण काल की सभ्यता तो इससे भी प्राचीन है। फिर आप क्या कहेंगे?

लेकिन हम यह कहना चाहते हैं कि श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र और महाभारत युद्ध में इस्तेमाल किए गए रथ क्या सबूत के लिए काफी नहीं हैं? जरा सोचिए, पहिए नहीं होते तो क्या रथ चल पाता? दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में रथ का उल्लेख मिलता है, चक्र का उल्लेख मिलता है, विमानों का उल्लेख मिलता है। क्या हम उन उल्लेखों को झुठलाकर यह मान लें कि पहिए का आविष्‍कार इराक में हुआ था? जबकि मध्‍यकाल तक इराक आवागमन के लिए ऊंटों का इस्तेमाल करता रहा है।

विश्वकर्मा : आपने विश्‍वकर्मा का नाम सुना ही होगा। विश्वकर्मा ने विष्णु का सुदर्शन चक्र, रामायण का शिव-धनुष तथा अर्जुन का गांडीव धनुष बनाया था। विश्वकर्मा ने ही इन्द्रप्रस्थ के आश्चर्यजनक भवन, इन्द्र की राजधानी अमरावती, रावण की सोने की लंका तथा कुबेर का पुष्पक विमान बनाया था जिसे रावण ने कुबेर से छीन लिया था। आप यह भी जान लें कि विश्‍वकर्मा का जन्म लगभग 9200 ईसा पूर्व हुआ था। अर्थात आज से 11 हजार वर्ष पूर्व जब हिमयुग समाप्त ही हुआ था। ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव के पुत्र विश्‍वकर्मा थे। विश्‍वकर्मा के मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं।

पहिए का आविष्कार मानव विज्ञान के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। पहिए के आविष्कार के बाद ही साइकल और फिर कार तक का सफर पूरा हुआ। इससे मानव को गति मिली। गति से जीवन में परिवर्तन आया। दुनिया में विज्ञान का इतिहास लिखना है, तो भारत को छोड़कर लिखना कहां तक सही है? विज्ञान का इतिहास हम कब तक पश्‍चिम की नजर से पढ़ते रहेंगे? क्यों भारत के स्कूलों में झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है? इतिहास को निष्पक्ष आधार पर क्यों नहीं पढ़ाया जाता?

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