महाभारत में चंद्रवंशी राजाओं (hindu chandravanshi) की वंशावली मिलती है। चंद्रवंश, सूर्यवंश, नागवंश आदि का बहुत लंबा इतिहास रहा है लेकिन यह सभी हैं राजा मनु की संतानें।
अत्रि की तपस्या से उनकी आंखों से जल बहने लगा जिसके कारण दिशाएं गर्भवती हो गईं। लेकिन उनका तेज ग्रहण न कर पाने के कारण दिशाओं ने उसका त्याग कर दिया लेकिन बाद में ब्रह्मा ने संभाला और उसे लेकर वे दूर चले गए। उसी तेजपूर्ण बालक का नाम चंद्र रखा गया। औषधियों ने उसे पति के रूप में स्वीकार किया।
चन्द्र ने हजारों वर्ष तक विष्णु की उपासना की और उनसे यज्ञ में भाग ग्रहण करने का अधिकार पा लिया। इसके बाद चन्द्र ने एक यज्ञ आयोजित किया जिसमें अत्रि होता बने, ब्रह्मा उदगाता, विष्णु स्वयं ब्रह्मा बनें और भृगु अध्वर्यु। शंकर ने रक्षपाल की भूमिका निभाई और इस तरह चन्द्र सम्पूर्ण ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो गया।
उसने अपने गुरु की पत्नी तारा को भी अपनी सहचरी बना दिया। जब बृहस्पति ने तारा को लौटाने का अनुरोध किया तो चन्द्रमा ने उसकी एक भी नहीं सुनी और अपनी जिद पर अड़ा रहा तो शिव को क्रोध आ गया। उसके कारण ही चन्द्रमा ने तारा को लौटाया। जब तारा के पुत्र हुआ तो उसका नाम बुध रखा गया, वह चंद्रमा का पुत्र था।
मनु की पुत्री इला और बुध से पुरुरवा का जन्म हुआ और चंद्रवंश चला। चंद्रवंश बहुत फैला और उत्तर तथा मध्य भारत के विभिन्न प्रदेशों में इसकी शाखाएं स्थापित हुई।
पुरुरवा ने 'प्रतिष्ठान' में अपनी राजधानी स्थापित की। पुरुरवा-उर्वशी से कई पुत्र हुए। सबसे बड़े 'आयु' को गद्दी का अधिकार मिला। दूसरे पुत्र अमावसु ने कन्नौज (कान्यकुब्ज) में राज्य की स्थापना की। अमावसु का पुत्र नहुष आयु के बाद अधिकारी हुआ। नहुष का लड़का ययाति भारत का पहला चक्रवर्ती सम्राट बना।
पुरुरवा ने उर्वशी से आठ संतानें उत्पन्न कीं। इनमें से मुख्य पुत्र आयु के पांच पुत्र हुए और उनमें रजि के सौ पुत्र हुए और जो राजेश कहलाए।
आयु के पहले पुत्र नहुष ने यति, ययाति, शर्याति, उत्तर, पर, अयाति और नियति सात पुत्र हुए। ययाति राजा बना और उसने अपनी पहली पत्नी से द्रुह्य, अनु और पुरु तथा दूसरी देवयानी से यदु और तुरवशु पुत्र उत्पन्न किए।-क्रमश: