सती के नेत्र लाल हो उठे। उनका मुखमंडल प्रलय के सूर्य की भांति तेजोदीप्त हो उठा। उन्होंने पीड़ा से तिलमिलाते हुए कहा, ओह! मैं इन शब्दों को कैसे सुन रही हूं? मुझे धिक्कार है। देवताओं, तुम्हें भी धिक्कार है! तुम भी उन कैलाशपति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो, जो मंगल के प्रतीक हैं और जो क्षणमात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता है। जो नारी अपने पति के लिए अपमानजनक शब्दों को सुनती है, उसे नरक में जाना पड़ता है। पृथ्वी सुनो, आकाश सुनो और देवताओं, तुम भी सुनो! मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया है। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुंड में कूद पड़ीं। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जलने लगा।