यह सवाल हर हिन्दू इसलिए जानना चाहता है, क्योंकि उसने कभी वेद, उपनिषद, 6 दर्शन, वाल्मिकी रामायण और महाभारत को पढ़ा नहीं। यदि देखने और सुनने के बजाय वह पढ़ता तो उसको इसका उत्तर उसमें मिल जाता, लेकिन आजकल पढ़ता कौन है। साइड में दी हुई लिंक को पढ़ें...
हिन्दू मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं। लेकिन समय की अवधारणा हिन्दू धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा बहुत अलग है। प्राचीनकाल से ही हिन्दू मानते आए हैं कि हमारी धरती का समय अन्य ग्रहों और नक्षत्रों के समय से भिन्न है, जैसे 365 दिन में धरती का 1 वर्ष होता है तो धरती के मान से 365 दिन में देवताओं का 1 'दिव्य दिन' होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों पर दिन और वर्ष का मान अलग अलग है।
हिन्दू काल-अवधारणा सीधी होने के साथ चक्रीय भी है। चक्रीय इस मायने में कि दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है तो यह चक्रीय है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कल वाला दिन ही आज का दिन है और आज भी कल जैसी ही घटनाएं घटेंगी। राम तो कई हुए, लेकिन हर त्रेतायुग में अलग-अलग हुए और उनकी कहानी भी अलग-अलग है। पहले त्रेतायुग के राम का दशरथ नंदन राम से कोई लेना-देना नहीं है।
यह तो ब्रह्मा, विष्णु और शिव ही तय करते कि किस युग में कौन राम होगा और कौन रावण और कौन कृष्ण होगा और कौन कंस? ब्रह्मा, विष्णु और महेश के ऊपर जो ताकत है उसे कहते हैं... 'काल ब्रह्म'। यह काल ही तय करता है कि कौन ब्रह्मा होगा और कौन विष्णु? उसने कई विष्णु पैदा कर दिए हैं कई अन्य धरतियों पर।
हिन्दू काल निर्धारण अनुसार 4 युगों का मतलब 12,000 दिव्य वर्ष होता है। इस तरह अब तक 4-4 करने पर 71 युग होते हैं। 71 युगों का एक मन्वंतर होता है। इस तरह 14 मन्वंतर का 1 कल्प माना गया है। 1 कल्प अर्थात ब्रह्माजी के लोक का 1 दिन होता है।
विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। 1 मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष। ...फिलहाल 6 मन्वंतर बीत चुके हैं और यह 7वां मन्वंतर चल रहा है जिसका नाम वैवस्वत मनु का मन्वंतर कहा गया है। यदि हम कल्प की बात करें तो अब तक महत कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प और पद्म कल्प बीत चुका है और यह 5वां कल्प वराह कल्प चल रहा है।
अब तक वराह कल्प के स्वयम्भुव मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है।मान्यता अनुसार सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से 5,632 वर्ष पूर्व हुआ था।