शास्त्रों में सहवास करने का उचित समय बताया गया है। संधिकाल में उच्च स्वर, सहवास, भोजन, यात्रा, वार्तलाप शौचादि करने का निषेध बताया गया है। 24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं। जब प्रहर बदलता है उसे संधि काल कहते हैं। प्रात: और शाम की संधि महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा महत्वपूर्ण तिथि, वार और नक्षत्र में भी उक्त कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा अनिष्ट ही होता है।
*लेकिन दिति कामदेव के वेग से अत्यंत बेचैन हो बेबस हो रही थी। कश्यपजी ने तब कहा, इस संध्याकाल में जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।