श्री कृष्ण को लड़ना पड़ा था इन रिश्तेदारों से

महाभारत में भगवान श्री कृष्ण के बहुत सारे शत्रु थे जिसमें से सबसे बड़ा शत्रु तो मगध का शासक जरासंध था। हालांकि हम यहां सिर्फ उन लोगों के बारे में संक्षिप्त में बताएंगे तो भगवान श्रीक कृष्ण के रिश्तेदार होने के बावजूद उनके कट्टर शत्रु थे।
 
 
1.कंस मामा : भगवान कृष्ण का मामा था कंस। वह अपने पिता उग्रसेन को राज पद से हटाकर स्वयं शूरसेन जनपद का राजा बन बैठा था। कंस को मालूम था कि मेरी बहन देवकी का आठवां पुत्र मेरी मौत का कारण बनेगा। यही कारण था कि वह भगवान श्री कृष्ण को हर हाल में मारना चाहता था। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब वह बाल कृष्ण को नहीं मार पाया तब योजना अनुसार कंस ने एक समारोह के अवसर पर कृष्ण तथा बलराम को आमंत्रित किया।


वह वहीं पर कृष्ण को मारना चाहता था, किंतु कृष्ण ने उस समारोह में कंस को बालों से पकड़कर उसकी गद्दी से खींचकर उसे भूमि पर पटक दिया और इसके बाद उसका वध कर दिया। कंस को मारने के बाद देवकी तथा वसुदेव को मुक्त किया और उन्होंने माता-पिता के चरणों में वंदना की। लेकिन इस एक घटना से जरासंध उनका कट्टर शत्रु बन गया, क्योंकि कंस जरासंध का जमाई था। जरासंध के कारण ही कृष्ण और कालयवन का युद्ध हुआ था।
 
 
2.शिशुपाल : शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। जब शिशुपाल का जन्म हुआ तब उसके 3 नेत्र तथा 4 भुजाएं थीं। वह गधे की तरह रो रहा था। तभी आकाशवाणी हुई कि बालक बहुत वीर होगा तथा उसकी मृत्यु का कारण वह व्यक्ति होगा जिसकी गोद में जाने पर बालक अपने भाल स्थित नेत्र तथा दो भुजाओं का परित्याग कर देगा। इस आकाशवाणी और उसके जन्म के विषय में जानकर अनेक वीर राजा उसे देखने आए। शिशुपाल के पिता ने बारी-बारी से सभी वीरों और राजाओं की गोद में बालक को दिया।

अंत में शिशुपाल के ममेरे भाई श्रीकृष्ण की गोद में जाते ही उसकी 2 भुजाएं पृथ्वी पर गिर गईं तथा ललाटवर्ती नेत्र ललाट में विलीन हो गया। इस पर बालक की माता ने दु:खी होकर श्रीकृष्ण से उसके प्राणों की रक्षा की मांग की। श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं इसके 100 अपराधों को क्षमा करने का वचन देता हूं।
 
 
शिशुपाल के शत्रु होने के कई कारण थे। उनमें से एक कारण यह भी था कि शिशुपाल अपने मित्र रुक्म की बहन रुक्मणि से विवाह करता चाहता था। लेकिन वह ऐसा कर नहीं सकता। रुक्मणी ने भगवान श्रीकष्ण से विवाह किया था। कालांतर में शिशुपाल ने अनेक बार श्रीकृष्ण को अपमानित किया और उनको गाली दी, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें हर बार क्षमा कर दिया। अंत में एक सभा में जब शिशुपाल ने 100वां अपराध किया तब श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन से उसका सिर अलग कर दिया। शिशुपाल ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए जरासंध से संधि कर रखी थी। जरासंध के साथ मिलकर उसने श्रीकृष्ण पर कई हमले किए थे।
 
 
3.दुर्योधन : भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा का हरण करके विवाह किया था। दुर्योधन भगवान श्रीकृष्ण का समधी था। ऐसे कई मौके आए जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को शक्तिसंपन्न होने से रोक दिया। हालांकि दुर्योधन श्रीकृष्ण का शत्रु होने के बावजूद उनसे मित्रता रखता था। लेकिन उसने श्रीकृष्ण की मित्रता को उतना महत्व नहीं दिया जितना की कर्ण की मित्रता को दिया।


दुर्योधन ने तीन ग‍लतियां की थी। पहली यह कि उसने श्रीकृष्क्ष की जगह उनकी नारायणी सेना का चयन किया। दूसरी यह कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। तीसरी यह कि तीसरी और अंतीम गलती उसने की थी वो थी युद्ध में आखिर में जाने की भूल। यदि वह पहले ही जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती। लेकिन श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि 'तुम्हारी हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वतयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा।'
 
 
4.कर्ण : कुंति पुत्र कर्ण एक महान योद्ध था जो कौरवों की ओर से लड़ा था। कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। कुंति का पुत्र होने के कारण कर्ण भगवान श्री कृष्ण का भाई था। कृष्ण के कारण ही कर्ण को अपने कवच और कुंडलों को इंद्र को दान देने पड़े थे। युद्ध के सत्रहवें दिन शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। उस दिन कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है। युद्ध के दौरान श्री कृष्ण अपने रथ को उस ओर ले जाते हैं जहां पास में ही दलदल होता है। कर्ण का सारथ यह देख नहीं बाता है और उसके रथ का एक पहिया दलदल में फंस जाता है।
 
 
रथ के फंसे हुए पहिये को कर्ण निकालने का प्रयास करते हैं। इसी मौके का लाभ उठाने के लिए श्रीकृष्ण अर्जुन से तीर चलाने को कहते हैं। बड़े ही बेमन से अर्जुन असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर देता है। इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल टूट जाता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए जाते हैं, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं। श्री कृष्ण ने अर्जुन को बचाने के लिए कई उपक्रम किए थे।
 
 
5.मित्रवन्दा : अवन्ती के राजा थे विन्द और अनुविन्द। उनकी बहिन मित्रविन्दा ने स्वयंवर में श्रीकृष्ण को ही अपना पति बनाना चाहा लेकिन उनके भाइयों ने रोक दिया, क्योंकि वे दुर्योधन के वशवर्ती तथा अनुयायी थे। वे चाहते थे कि उनकी बहिन का विवाह दुर्योधन से ही हो। मित्रविन्द श्रीकृष्ण की बुआराज्याधिदेवी की कन्या थी। राज्याधिदेवी की बहिन कुंति थी। इसका मतलब यह कि मित्रविन्दा श्रीकृष्ण की बहिन थी। भगवान श्रीकृष्‍ण राजाओं की भरी सभा में मित्रविन्दा का हरण कर ले गए। इस दौरान बलराम और श्रीकृष्ण को मित्रवन्दा के भाइयों से युद्ध भी करना पड़ा था।
 
 
6.रुक्म : महाभारत के अनुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के 5 भाई थे- रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली। रुक्मिणी श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती थी लेकिन उसके भाई उसका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे। शिशुपाल का गहरा मित्र था रुक्म। रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो।

रुक्म ने माता-पिता के विरोध के बावजूद अपनी बहन का शिशुपाल के साथ रिश्ता तय कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दी थीं। रुक्मिणी को जब इस बात का पता लगा, तो वह बड़ी दुखी हुई। उसने अपना निश्चय प्रकट करने के लिए एक ब्राह्मण को द्वारिका श्रीकृष्ण के पास भेजा। अंतत: रुक्म और शिशुपाल के विरोध के कारण ही श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह करना पड़ा। श्री कृष्ण को इस दौरान रुक्मी से युद्ध भी करना पड़ा था।
 

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