महाभारत में किसके पास था कौन सा ध्वज?

प्रत्येक के घर में महाभारत होना चाहिए। महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। यह ग्रंथ भारत देश के मन-प्राण में बसा हुआ है। यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श स्त्री-पुरुषों के चरित्रों से भारत के जन-जीवन को यह प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है।
महाभारत में कई घटनाएं, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। खैर, इस बार हम बता रहे हैं आपको कि महाभारत में किस योद्धा का पास था कौन सा ध्वज। अगले पन्ने पर....
 

युधिष्ठिर : नक्षत्रयुक्त चन्द्र वाला स्वर्ण ध्वज।
अर्जुन : अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चित्र अंकित था। इसे 'वानर ध्वज' कहा जाता था।
भीष्म : भीष्‍म के पास ताड़ और 5 तारों के चिह्न से युक्‍त विशाल ध्‍वजा-पताका थी।
नकुल : स्वर्ण पीठ लिए लाल हिरण का चित्र अंकित था।
सहदेव : सहदेव के रथ पर लहराने वाले ध्वज पर चांदीजड़ित हंस का चिन्ह बना हुआ था।
अभिमन्यु : अभिमन्यु के ध्वज पर पीले पत्तों वाला पेड़ अंकित था।
कृपाचार्य : कृपाचार्य की ध्वजा पर सांड बना था।
मद्रराज : मद्रराज की ध्वजा पर हल।
वृषसेन : अंगराज वृषसेन की ध्वजा पर मोर।
जयद्रथ : सिंधुराज जयद्रथ के झंडे पर वराह की छवि अंकित थी। जयद्रथ के रथ पर चांदी का शूकर-ध्वज फहरा रहा था।
भूरिश्रवा : भूरिश्रवा के रथ में यूप का चिह्न बना था। वह ध्‍वज सूर्य के समान प्रकाशित होता था और उसमें चन्‍द्रमा का चिह्न भी दृष्टिगोचर होता था।
गुरु द्रोणाचार्य : गुरु द्रोणाचार्य के ध्वज पर सौवर्ण वेदी का चित्र था। इसके अलावा तपस्वी का कटोरा और धनुष अंकित था।
घटोत्कच : घटोत्कच के ध्वज पर गिद्ध विराजमान था।
दुर्योधन : दुर्योधन के ध्वज पर कोबरा बना हुआ था। इसे सर्पकेतु भी कहते थे।
श्रीकृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण के झंडे पर गरूड़ अंकित होने से उसे गरूड़ ध्वज कहा जाता है।
बलराम : बलरामजी ने हालांकि युद्ध में भाग नहीं लिया था लेकिन बलराम के झंडे पर ताल वृक्ष की छवि अंकित होने से उसे 'ताल ध्वज' कहते थे।
कर्ण : कर्ण का हस्तिकाश्यामाहार-केतु नामक ध्वज था।
अश्वत्थामा : अश्वत्थामा की ध्वजा पताका में सिंह की पूंछ का चिन्ह बना हुआ था।
 
इसके अलावा महाभारत में शाल्व के शासक अष्टमंगला ध्वज रखते थे। झंडे पर हाथी की आकृति थी और स्वर्ण मयूरों से शोभित था। महीपति की ध्वजाओं पर स्वर्ण, रजत एवं ताम्र धातुओं से बने कलश आदि चित्रित रहते थे। इनकी एक ध्वजा सर्वसिद्धिदा कहलाती थी। इस ध्वजा पर रत्नजड़ित घड़ियाल के 4 जबड़े अंकित होते थे। 
 
ध्वजों के प्रकार : रणभूमि में अवसर के अनुकूल 8 प्रकार के झंडों का प्रयोग होता था। ये झंडे थे- जय, विजय, भीम, चपल, वैजयन्तिक, दीर्घ, विशाल और लोल। ये सभी झंडे संकेत के सहारे सूचना देने वाले होते थे। विशाल झंडा क्रांतिकारी युद्ध का तथा लोल झंडा भयंकर मार-काट का सूचक था।
 
* जय : जय झंडा सबसे हल्का तथा रक्त वर्ण का होता था। यह विजय का सूचक माना जाता था। इसका दंड 5 हाथ लंबा होता था।
* विजय : विजय की लंबाई 6 हाथ थी। श्वेत वर्ण का यह ध्वज पूर्ण विजय के अवसर पर फहराया जाता था।
* भीम : भीम ध्वज 7 हाथ लंबा होता था और लोमहर्षक युद्ध के अवसर पर इसे फहराया जाता था। यह अरुण वर्ण का होता था।
* चपल : चपल ध्वज पीत वर्ण का होता था तथा 8 हाथ लंबा होता था। विजय और हार के बीच जब द्वन्द्व चलता था, उस समय इसी चपल ध्वज के माध्यम से सेनापति को युद्ध-गति की सूचना दी जाती थी।
* वैजयन्तिक : वैजयन्तिक ध्वज 9 हाथ लंबा तथा विविध रंगों का होता था।
* दीर्घ : दीर्घ ध्वज की लंबाई 10 हाथ होती थी। यह नीले रंग का होता था। युद्ध का परिणाम जब शीघ्र ज्ञात नहीं हो सकता था तो उस समय यही झंडा प्रयुक्त होता था।
* विशाल : विशाल ध्वज 11 हाथ लंबा और धारीवाल।
* लोल : लोल झंडा 12 हाथ लंबा और कृष्ण वर्ण का होता था।

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