भगवान शिव की नगरी में ही प्रलय क्यों?

भगवान शिव की नगरी उज्जैन में जलप्रलय के नजारे हैं। पिछले 3 दिनों से उज्जैन में हो रही लगातार तेज बारिश से विश्वप्रसिद्ध एवं देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह तक में वर्षा जल प्रवेश कर गया है। संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है, जब महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में बारिश का पानी भरा हो।
 
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शिप्रा और गंभीर नदी उफान पर हैं। कई लोगों के मकान आधे से ज्यादा डूब गए हैं। मूसलधार बारिश की वजह से शहर में 5,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया तथा शहर के स्कूल पिछले 2 दिनों से बंद हैं। शहर के लोगों का कहना है कि हमने जिंदगी में ऐसी बारिश नहीं देखी।
 
दूसरी ओर शिव की नगरी काशी में बाबा विश्‍वनाथ और मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर के आसपास भी जलप्रलय के नजारे देखने को मिल रहे हैं। 
 
अब सवाल यह उठता है कि आखिर शिव की नगरी में ही प्रलय क्यों? आपने देखा होगा कि केदारनाथ का प्रलय और फिर उसके बाद काठमांडू के पशुपतिनाथ का प्रलय। कश्मीर में भी अमरनाथ के आसपास जलप्रलय हुआ था। सभी जगह आए प्रलय की खासियत यह रही कि शिव के आसपास मौत का मंजर रहा, लेकिन उनका मंदिर इससे अछूता रहा।

कुछ लोग अब मानने लगे हैं कि भगवान शिव इस समय क्रोधित हो गए हैं। आओ जानते हैं कि शिव की नगरी में ही क्यों आ रहा है प्रलय? आओ इस सवाल के जवाब से पहले जानें कहां-कहां हुआ प्रलय...अगले पन्ने पर शिव की पहली नगरी...
 

केदारनाथ जलप्रलय : जून 2013 में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन से केदारनाथ धाम के जलप्रलय के बारे में कौन नहीं जानता? प्रकृति ने वहां जो विनाशलीला रची, उससे ऐसा लगा मानो स्वयं शिव अपने 'तांडव रूप' में आ गए हों। एक ही झटके में 10 हजार लोग मौत की नींद सो गए। जो बच गए थे उन्होंने जो मंजर देखा उसके बारे में आज भी सोचकर उनका दिल दहल जाता है। चारों तरफ लाशें ही लाशें, लेकिन आश्चर्य कि शिव के मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ।
संस्कृत महाविद्यालय इंदौर के व्याख्याता डॉ. अभिषेक पांडेय ने बताया कि एक बार शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद के भोपाल प्रवास के दौरान उनसे इस बारे में चर्चा हुई थी कि आखिर केदारनाथ में इतना भयानक प्रलय होने के बाद मंदिर कैसे सुरक्षित रहा और अचानक वह विशालकाय शिला कहां से आ गई? तब शंकराचार्य ने कहा कि जहां वह विशालकाय शिला आकर रुकी थी ठीक उसके नीचे आदि शंकराचार्यजी की समाधि है। शक्तिपीठ या ज्योतिर्लिंग दैवीय ऊर्जा के केंद्र हैं।
 
मंदाकिनी नदी के पास स्थित केदारनाथ का मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के रुद्रप्रयाग नगर में है। यहां भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। केदारनाथ का 6,940 मीटर ऊंचा हिमशिखर ऐसा दिखाई देता है, मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक में झांकने का यह झरोखा हो। कहते हैं कि भगवान शिव यहां आराम करते हैं और उनके स्थान को लोगों ने पिकनिक स्पॉट बना रखा था। यहां सिर्फ संन्यासी ही रह सकता है, आम गृहस्थ नहीं।
 
केदारनाथ का मंदिर गर्मियों के दौरान केवल 6 महीने के लिए खुलता है। ठंड में इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी के कारण आस-पास का इलाका बर्फ की चादर से ढंका रहता है इसलिए गर्मियों में ही यहां की यात्रा होती है। वर्षा में यहां की यात्रा करना प्राय: कठिन और जोखिमभरा ही माना जाता है।
 
स्कंद पुराण में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, 'हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदार खंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है।'
 
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काठमांडू : नेपाल को देवताओं का घर भी कहा जाता है। यहां शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान पशुपतिनाथ का ज्योतिर्लिंग है। यहां का विश्‍वप्रसिद्ध मंदिर भी बागमती नदी के पास स्थित है।
इस साल के अप्रैल में ही नेपाल में 7.9 की तीव्रता का भूकंप आया और समूचा नेपाल धराशायी हो गया। काठमांडू शहर भी ध्वस्त हो गया लेकिन आश्चर्य कि शिव के मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ।
 
उल्लेखनीय है कि इस भूकंप से लगभग 10 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई और हजारों अभी भी लापता हैं। दूरदराज के गांवों में लाशें बिखरी पड़ी हैं और अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहे हैं। अब लोगों को रात में नींद नहीं आती। आधा नेपाल बेघर हो गया है।
 
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काशी भी डूबी है कई बार जल में : मान्यता है कि समूचा काशी, गुप्तकाशी और उत्तरकाशी क्षेत्र शिव के त्रिशूल पर बसा है। यहीं से पाताल और यहीं से स्वर्ग जाने का मार्ग है। हम बात कर रहे हैं उस काशी की जिसे वाराणसी या बनारस भी कहते हैं और गंगा नदी के तट पर बसी है। 
त्रिशूल हिमालय की 3 चोटियों के समूह का नाम भी है। उत्तरकाशी को प्राचीन काशी माना जाता है। एक काशी उत्तरप्रदेश में स्थित है जिसे 'वाराणसी' भी कहा जाता है। यह काशी भी शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक गुप्तकाशी स्थान भी है। गुप्‍तकाशी का वही महत्‍व है, जो महत्‍व काशी का है। माना जाता है कि यहीं पर विराजमान हैं 'विश्‍वनाथ'।
 
वर्तमान की बारिश से काशी में भी उज्जैन जैसे हालात हैं। गंगा के जलस्तर में बढ़ाव जारी है। रविवार को गंगा दशाश्वमेध घाट तक बढ़ आई और शाम तक आरती स्थल पर पानी पहुंच गया। तुलसी घाट से जैन घाट और राजेन्द्र प्रसाद घाट से मान मंदिर समेत कई घाटों का संपर्क टूट गया। कई छोटे-बड़े 200 मंदिर डूब गए। 
 
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शिव को प्यार है प्रकृति से : संस्कृत के व्याख्याता डॉ. अभिषेक पांडेय के अनुसार हिन्दू शास्त्र कहते हैं कि इस जगत में ईश्वर की आज्ञा से ब्रह्मा हमें लाने वाला है, विष्णु पालनहार है और भगवान शिव ले जाने वाला है। शिव की भक्ति अत्यंत ही कठिन और न समझ में आने वाली मानी गई है। शिव तो प्रलय का सृजन ही करना जानते हैं। 
हालांकि यह बताना जरूरी है कि शिव पुराण अनुसार सदाशिव की एक शक्ति प्रकृति है और जो कोई भी प्रकृति से छेड़छाड़ करेगा, वह अपने आसपास प्रलय होते हुए देखेगा। शैव और शाक्त पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव को वे लोग जरा भी पसंद नहीं हैं, जो प्रकृति के किसी भी तत्व से खिलवाड़ करते हैं। एक बार जलंधर का वध करते वक्त शिव ने यह कहा भी था कि जो प्रकृति का दुश्मन है, समझो मेरा दुश्मन है।
 
संस्कृत के व्याख्याता डॉ. अभिषेक पांडेय के अनुसार पुराणों के 5 लक्षण बताए गए हैं। उन्हीं में से एक है प्रलय। उन्होंने कहा कि भगवान शिव का कार्य प्रलय का सृजन करना भी है। उनको संहार का देवता कहा गया है। शिव का एक नाम रुद्र है। रुद्र का अर्थ है रोने और रुलाने वाला। जब प्रकृति के साथ अतिरेक होगा तो शिव क्रोधित होंगे ही। 
 
सर्गस्य प्रतिसर्गस्च वंशोमन्मतराणिच।
वंशानुचरितम पुराणं पंच लक्षणम।।
 
पांडेयजी ने केदारनाथ और काठमांडू में आश्चर्यजनक रूप से मंदिर के बच जाने और उक्त मंदिरों के आसपास विनाश होने के संदर्भ में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि यह संकेत है कि दैवीय शक्तियां अपने आसपास विनाशलीला रचते हुए आश्चर्यजनक रूप से अपने अस्तित्व को बचाते हुए यह संदेश देती है कि प्रकृति से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। समय पर चेतें, नहीं तो प्रलय निश्चित है।
 
डॉ. पांडेय के अनुसार शिव का जलाभिषेक ही किया जाता है। यह इस बात का संकेत है कि भगवान शिव भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से अंत में जलप्रलय करके ही धरती को जल में डुबाकर शांत कर देते हैं। जल शांति और जीवन का प्रतीक है। जब धरती ज्यादा अशांत हो जाती है तो जलप्रलय के माध्यम से उसे शांत कर दिया जाता है।
 
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भूकंप से नदियों में उफान : दरअसल, शिव के लगभग सभी ज्योतिर्लिंग या तो नदी किनारे बसे हैं या फिर वे ऊंचे विशालकाय पहाड़ों पर स्थित हैं। अमरनाथ, केदारनाथ जैसे शिवलिंग तो हिमालय के बर्फीले क्षेत्र में स्थित हैं। मानव के विकास के साथ ही अब लगभग सभी नदियों पर बांध बन गए हैं तो दूसरी ओर पहाड़ों की भी प्राकृतिक संपदा को लगभग नष्ट कर दिया गया है। आजकल शिव के कुछ मंदिर तो पिकनिक स्पॉट बन गए हैं।
आज से 100 वर्ष पहले तक केदारनाथ या चारों धाम की यात्रा पैदल करते थे। इसके अलावा चारों धाम की यात्रा पर बूढ़े-बुजुर्ग ही जाते थे। लेकिन आवागमन के साधन और जनसंख्या बढ़ने के चलते लोग अब तीर्थयात्रा के महत्व को छोड़कर प्रकृति के नजारे और मौज-मस्ती के लिए केदारनाथ जैसी दुर्गम यात्रा पर भी अपने बच्चों और परिवार के सभी सदस्यों को ले जाने लगे हैं। मंदिर में बढ़ती भीड़ ने व्यापार भी बढ़ा दिया है जिसके चलते अब ये स्थल किसी पर्यटनस्थल-से बन गए हैं। इसके चलते प्रकृति का नाश हो गया।
 
गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की कहानी। पुराणों के अनुसार मानव के प्रकृति में दखल देने के कारण भूकंप, जलप्रलय और सूखे के बाद गंगा और उसकी सहयोगी नदियां लुप्त हो जाएंगी। पर्यावरणविदों की मानें तो पर्यावरण से हो रही लगातार छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप ही नेपाल से लेकर केदारनाथ और केदारनाथ से लेकर उज्जैन तक प्रलय के नजारे देखने को मिल रहे हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति यदि हम अभी से सतर्क नहीं हुए तो मानव को खुद का अस्तित्व बचाना मुश्‍किल हो जाएगा।
 
भूकंप से जलप्रलय : पर्यावरणविदों के अनुसार भूकंप का झटका जलप्रलय का भी कारण बन सकता है। नेपाल में आए भयानक भूकंप के कारण भारत में मध्यप्रदेश और उड़ीसा की जमीन भी हिल गई थी। सबसे ज्यादा झटके तो हिमाचल, कश्मीर, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश में ही महसूस किए गए थे। 
 
वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक भूकंप की वजह से नदियों की धारा बदलने का खतरा है। नदियों के बेसिन क्षेत्र में नीचे की मिट्टी नाजुक एवं रेतीली जमीन से पानी का सैलाब फूट सकता है। गीली जमीन के बीच से अगर पृथ्वी की ऊर्जा निकली तो वह तबाही का कारण बनेगी। नदियों के बेसिन में बसे शहर जलमग्न हो सकते हैं। 
 
इंडियन प्लेट धीरे-धीरे यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसक रही है जिससे हिमालय हर वर्ष 5 मिमी उठ रहा है। पृथ्वी के अंदर टकराने वाली प्लेटों की मोटाई 50 से 100 किमी तक आंकी गई है जिनके आपस में टकराने की वजह से भारी पैमाने पर ऊर्जा रिलीज होती है। यही ऊर्जा जिस भी क्षेत्र से निकलेगी, वहां भयावह नुकसान होगा। अगर यह क्षेत्र बेसिन हुआ तो नदियां धाराएं बदलकर शहरों में घुस जाएंगी। नदियों की रेतीली जमीन से पानी फटकर ऊपर आ सकता है।
 
वर्तमान में हो भी यही रहा है। मध्यप्रदेश में शिप्रा, नर्मदा, गंभीर, कालीसिंध, बेतवा, चंबल, तवा, सोन, केन, ताप्ती, गुना की सिंध आदि सभी नदियां उफान पर हैं और इन सभी नदियों का पानी शहर और गांवों में दाखिल हो चुका है। उसी तरह उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में हो रही बारिश के चलते भी गंगा और यमुना का जलस्तर खतरे के निशान से कुछ ही नीचे है। भूगर्भशास्त्र के मुताबिक उत्तरप्रदेश गंगा के मैदान में बसा हुआ है, जबकि बिहार में मैदान और जंगल के साथ ही अन्य नदियों का खतरा भी है। 
 
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पुराणों में बताया गया है कि भगवान शिव के 3 नेत्र हैं। भगवान भोलेनाथ अपने तीसरे नेत्र को हमेशा बंद किए रहते हैं। लेकिन जब उनका ध्यान भंग किया जाता है तो उनका यह नेत्र खुल जाता है और हमें भूकंप, जलप्रलय या भयंकर तूफान के रूप में उनका क्रोध देखने को मिलता है। ऐसा तब होता है, जब मानव की गतिविधियों के कारण शिव नाराज हो जाते हैं। वे प्रलय का सृजन करके मानव को सचेत करते रहते हैं।

उल्लेखनीय है कि शिव के धाम पर बच्चे, जवान, बुढ़े सभी जाते उनमें से कई तो नशे करने आने वाले भी रहते हैं। अपवित्र आत्माएं शिव के धाम जाकर शिव को या उनके गणों को नाराज कर देती हैं। अधिकतर नौजवानों ने शिव के मंदिर को मनोरंजन का स्थल समझ रखा है।
 
भगवान शिव का संपूर्ण क्षे‍त्र हिमालय है। कैलाश पर्वत, अमरनाथ, केदारनाथ और काशी में शिव विशेष रूप से विराजमान रहते हैं और वे वहां रहकर ध्यान करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से उक्त तीनों ही स्थानों पर मानव की गतिविधियां बढ़ गई हैं जिसके चलते जानकारों के मुताबिक शिव क्रोधित हो उठे हैं। उत्तराखंड के बाद कश्मीर में बाढ़, फिर नेपाल में भूकंप और अब चारों ओर जल प्रलय इसी का संकेत है।
 
उल्लेखनीय है कि प्रलय का प्रतीक भगवान शिव का तीसरा नेत्र पहली बार कामदेव के कारण खुला था। शिव की साधना में विघ्न डाल रहे कामदेव को भगवान शिव के तीसरे नेत्र ने भस्म कर दिया था। कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ ने पहली बार अपने तीसरे नेत्र को फाल्गुन पूर्णिमा यानी होली के दिन खोला था।

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