लिंगायत कौन होते हैं और अन्य से कितने अलग होते हैं?

शुक्रवार, 2 सितम्बर 2022 (12:09 IST)
Lingayat sect : कर्नाटक में लिंगायत संप्रदाय को लेकर राजनीति होती रही है, क्योंकि इस संप्रदाय के लोगों की संख्या राज्य में बहुत है। यह भी एक विवादित तथ्य है कि समय के साथ लिंगायतों ने खुद को बदला भी है, क्योंकि यह समुदाय लंबे समय से अलग धार्मिक समूह और धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग करता रहा है। आओ जानते हैं कि लिंगायत कौन होते हैं और अन्य से कितने अलग होते हैं?
 
कौन है लिंगायत? 
हिन्दू धर्म के मुख्‍यत: 6 संप्रदाय है- वैदिक, स्मार्त, शैव, वैष्णव, शाक्त और निरंकारी। उक्त संप्रदायों की कई उप शाखाएं हैं। लिंगायत संप्रदाय को शैव संप्रदाय की ही उपशाखा वीरशैव का ही एक हिस्सा माना जाता है। शैव संप्रदाय से जुड़े अन्य संप्रदाय हैं जो कि शाक्त, पाशुपत, आगमिक, रसेश्वर, महेश्वर, कश्मीरी शैव, वीर शैव, तमिल शैव, नंदीनाथ, कालदमन, कोल, लकुलीश, कापालिक, कालामुख, लिंगायत, अघोरपंथ, दशनामी, नाथ, निरंजनी संप्रदाय-नाथ संप्रदाय से संबंधित, शैव सिद्धांत संप्रदाय (सिद्ध संप्रदाय), श्रौत शैव सिद्धांत संप्रदाय (शैवाद्वैत/शिव-विशिष्टाद्वैत) आदि नामों से जाने जाते हैं।
 
लिंगायत कितने अलग हैं? : लिंगायत वीरशैव संप्रदाय का हिस्सा है। शैव संप्रदाय में एक वे हैं जो शिव के साकार रूप की पूजा करते हैं, लेकिन लिंगायत संप्रदाय के लोग शिव के निराकार अर्थात इष्टलिंग की पूजा करते हैं। लिंगायत अपने शरीर पर इष्टलिंग या शिवलिंग धारण करते हैं। पहले लिंगायत इसको निराकार शिव का लिंग मानते थे लेकिन वक्त के साथ इसकी परिभाषा बदल गई। अब वे इसे इष्टलिंग कहते हैं और इसे आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं। इनके सभी संन्यासी भगवा वस्त्र पहनते हैं। 
 
मान्यता ये है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं। लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते। उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना के उदय से भी पहले से था। वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि लिंगायत भगवान शिव की पूजा नहीं करते, लेकिन भीमन्ना खांद्रे जैसे विचारक का कहना है कि वीरशैव और लिंगायतों में कोई अंतर नहीं है। भीमन्ना ऑल इंडिया वीरशैव महासभा के अध्यक्ष पद पर 10 साल से भी ज्यादा समय तक रहे हैं।
 
वीरशैव : लिंगायतों के पहले विरशैव की प्रचलित था। वसुगुप्त ने 9वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कश्मीरी शैव संप्रदाय की नींव डाली थी। वसुगुप्त के दो शिष्य थे कल्लट और सोमानंद। इन दोनों ने ही शैव दर्शन की नई नींव रखी जिसे मानने वाले कम ही रह गए हैं। वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है जिन्हें पाशुपत, काल्पलिक, कालमुख और लिंगायत नाम से जाना जाता है। 
 
वर्तमान में प्रचलित लिंगायत संप्रदाय, प्राचीन वीरशैव संप्रदाय का ही नया रूप है। लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम बी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिवलिंग की उपासना करते हैं। इनका वैदिक क्रियाकांड में विश्वास नहीं है। बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक उल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशैव संप्रदाय भी कहा जाता था, लेकिन राजनीति के चलते अब ये खुद को इससे जोड़कर नहीं देखते हैं।
लिंगायत और जाति : बारहवीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना (उन्हें भगवान बासवेश्वरा भी कहा जाता है) ने हिंदू जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। संत बसवेश्वर का जन्म 1131 ईसवी में कर्नाटक के संयुक्त बीजापुर जिले में स्थित बागेवाडी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बासव को कर्नाटक में बासवेश्वरा नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने हिन्दू धर्म में मौजूद जातिवाद और कर्मकांड के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। हालांकि वर्तमान में लिंगायतों में ही 99 जातियां हो चली है जिनमें से आधे से ज्यादा दलित या पिछड़ी जातियों से हैं। लेकिन लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं। पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है।
 
लिंगायतों की उत्पति का प्रारंभ 12वीं सदी से है जब राज्य के एक समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। बासवन्ना मूर्ति पूजा नहीं मानते थे। उन्होंने वेदों के निराकार ब्रह्म की उपासना का समर्थन किया था। बसेश्वर के जाने के बाद यह संप्रदाय पहले हिंदू शैव धर्म का ही पालन करने लगा था, लेकिन बाद में इनके अनुयायियों ने खुद को शिवलिंग की पूजा से अलग करके इष्टलिंग को ही पूजा का आधार बनाया।  

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