आज भी जीवित हैं- कृपाचार्य

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013 (12:34 IST)
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गौतम ऋषि के पुत्र शरद्वान और शरद्वार के पुत्र कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और वह जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। लेकिन उन्हों चिरंजीवी रहने का वरदान भी था।

कृपाचार्य के पिता का नाम था शरद्वान और माता का नाम था नामपदी। नामपदी एक देवकन्या थी। इंद्र ने शरद्वान को साधने से डिगाने के लिए नामपदी को भेजा था, क्योंकि वे शक्तिशाली और धनुर्विद्या में पारंगत थे जिससे इंद्र खतरा महसूस होने लगा था।

देवकन्या नामपदी (जानपदी) के सौंदर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हो गए कि उनका वीर्य स्खलित होकर एक सरकंडे पर गिर पड़ा। वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई।

शरद्वान-नामपदी ने दोनों बच्चों को जंगल में छोड़ दिया जहां महाराज शांतनु ने इनको देखा और इन पर कृपा करके दोनों का लालन पालन किया जिससे इनके नाम कृप तथा कृपी पड़ गए।

पांडवों और कौरवों के गुरु : कृप भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत हुए। भीष्म ने इन्हीं कृप को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिए नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुए।

कुरुक्षेत्र के युद्ध में ये कौरवों के साथ थे और कौरवों के नष्ट हो जाने पर ये पांडवों के पास आ गए। बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई। कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोण के साथ हुआ था। कई का पुत्र का नाम था- अश्वत्थामा।

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