मध्यकाल में जब अरब, तुर्क और ईरान के मुस्लिम शासकों द्वारा भारत में हिन्दुओं पर अत्याचार कर उनका धर्मांतरण किया जा रहा था, तो उस काल में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए सैकड़ों चमत्कारिक सिद्ध, संतों और सूफी साधुओं का जन्म हुआ।
मध्यकाल के लगभग सभी सिद्धों के बारे में संक्षिप्त जानकारी हमने यहां जुटाई है। इसका पहला भाग प्रस्तुत है। ये सारे सिद्ध संत गुरु गोरखनाथ और शंकराचार्य के बाद के हैं। ईस्वी सन् 500 से ईस्वी सन 1800 तक के काल को मध्यकाल माना जाता है।
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1. गोगादेव जाहर वीर : (950 ईस्वी) : चौहान वंश में जन्मे ये राजस्थान के प्रसिद्ध चमत्कारिक सिद्ध पुरुष हैं। सिद्ध वीर गोगादेव का जन्मस्थान राजस्थान के चुरु जिले के दत्तखेड़ा में स्थित है।
मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिन्दू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। पिता का नाम जेवर सिंह, माता का नाम बादलदे, पत्नी का नाम कमलदे था। आप नीली घोड़ी पर सवारी करते थे।
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2. झूलेलाल : (10वीं सदी) : सिंध प्रांत (पाकिस्तान)। सिंध प्रांत के हिन्दुओं की रक्षार्थ वरुण का अवतार। सिंध प्रांत में मरखशाह नामक एक क्रूर मुस्लिम राजा के अत्याचार और हिन्दू जनता को समाप्त करने के कुचक्र के चलते झूलेलाल का अवतार हुआ और उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाया।
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3. वीर तेजाजी महाराज : (29-1-1074 से 28-8-1103) : राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के प्रसिद्ध सिद्ध पुरुष। तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गांव में हुआ। ये राजस्थान के 6 चमत्कारिक सिद्धों में से एक हैं। यह सबसे बड़े गौ रक्षक माने गए हैं।
गायों की रक्षा के लिए इन्होंने अपने प्राणों की बलि तक दे दी। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ मे बसे थे। पिता का नाम ताहड़ की जाट, माता का नाम राजकुंवर, पत्नी का नाम पेमलदे, घोड़ी का नाम लीलण।
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4. संत नामदेव : (1267 में जन्म) गुरु विसोबा खेचर थे। गुरुग्रंथ और कबीर के भजनों में इनके नाम का उल्लेख मिलता है। ये महाराष्ट्र के पहुंचे हुए संत हैं। संत नामदेवजी का जन्म कबीर से 130 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के जिला सातारा के नरसी बामनी गांव में हुआ था। उन्होंने ब्रह्मविद्या को लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार किया तो संत नामदेवजी ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में 'हरिनाम' की वर्षा की।
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5. संत ज्ञानेश्वर : सन् (1275 से 1296 ई.) : संत ज्ञानेश्वर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैठण के पास आपेगांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। ज्ञानेश्वर ने भगवद् गीता के ऊपर मराठी भाषा में एक 'ज्ञानेश्वरी' नामक 10,000 पद्यों का ग्रंथ लिखा है।
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6. रामानंद : (1299 ई. से 1410 ई.) : वैष्णवाचार्य स्वामी रामानंद का जन्म प्रयाग में हुआ था। अनंतानंद, संत कबीर, सुखानंद, सुरसुरानंद, पद्मावती, नरहर्यानंद, पीपा, भावानंद, रैदास (रवि दास) धन्ना सेन और सुरसुरी आदि रामानंद के शिष्य थे।
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7. कबीर : (जन्म- सन् 1398 काशी - मृत्यु- सन् 1518 मगहर) : संत कबीर का जन्म काशी के एक जुलाहे के घर हुआ था। पिता का नाम नीरु और माता का नाम नीमा था। इनके दो संतानें थीं- कमाल, कमाली। मगहर में 120 वर्ष की आयु में उन्होंने समाधि ले ली।
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8. पीपा : (1379 से 1490) : संत पीपा का जन्म चैत्र सुदी 15, वि.सं. 1380 अर्थात 1323 ई. को हुआ और देहांत चैत्र सुदी 1, वि.सं. 1441 अर्थात 1384 ई. को हुआ, जबकि शोधानुसार पीपा राव का शासनकाल वि.सं. 1323-1348 तक रहा।
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9. बाबा रामदेव (1352-1385) : इन्हें द्वारिकाधीश का अवतार माना जाता है। इन्हें पीरों का पीर रामसा पीर कहा जाता है। सबसे ज्यादा चमत्कारिक और सिद्ध पुरुषों में इनकी गणना की जाती है। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव के समाधि स्थल रुणिचा में मेला लगता है, जहां भारत और पाकिस्तान से लाखों की तादाद में लोग आते हैं।
विक्रम संवत 1409 को उडूकासमीर (बाड़मेर) उनका जन्म हुआ था और विक्रम संवत 1442 में उन्होंने रूणिचा में जीवित समाधि ले ली। पिता का नाम अजमालजी तंवर, माता का नाम मैणादे, पत्नी का नाम नेतलदे, गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा असवार।
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10. पाबूजी : (1362) विक्रम संवत 1313 में जोधपुर जिले के फलौदी के पास कोलूमंड गांव में हुआ। आपको लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को कोलू में मेला भरता है। इनकी फड़ का वाचन भील जाति के नायक भोपे करते हैं| आपकों ऊंटों, गायों और घोड़ा का रक्षक माना जाता है।
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11. मेहाजी मांगलिया : () राजस्थान के पांच पीरों में से एक मेहाजी मांगलिया सांखला क्षत्रिय परिवार से थे। वे जन्म से ही ननिहाल में रहते थे और इनका पालन-पोषण वहीं हुआ। वे मारवाड़ के राव चूड़ा के समकालीन थे। राजस्थान के वापिणी (ओसियां, जोधपुर) में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेला भरता है। जैसलमेर के राणंग देव भाटी से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए। पिता का नाम धांधलजी राठौड़, माता का नाम कमलादे, पत्नी का नाम सुप्यारदे, घोड़ी का नाम केसर कमली है।
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12. हड़बू : (1438-89 ई.) : जैसलमेर के हड़बूजी सांखला राव क्षत्रिय परिवार से थे। राजस्थान के राव जोधा के समकालीन थे। बेगटी गांव (फलौदी, जोधपुर) में इनका प्रमुख मंदिर है जहां इनकी गाड़ी की पूजा की जाती है। आप रामदेवजी के मौसेरे भाई थे। इनके गुरु बालकनाथ थे।
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13. रैदास (1398 से 1518 ई.) : संत कुलभूषण कवि रैदास यानी संत रविदास का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश, भारत) में हुआ था। मीरा के समकालीन थे। कुछ लोग इन्हें मीरा का गुरु मानते हैं। पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया था। प्रसिद्ध वाक्य 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'।
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14 . मीराबाई : (1498-1547) : मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन वृंदावन में गुजारा। वे कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। माना जाता है कि कृष्ण की एक सखी लीलावती ने ही मीरा के रूप में जन्म लिया था। प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई जोधपुर, राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं।
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15. गुरुनानक (1469-1539) : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को पंजाब के राएभोए के तलवंडी नामक स्थान में कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर में गुरु नानक का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो कि अब पाकिस्तान में है। ये सिखों के प्रथम गुरु हैं।